"ऊष्मा": अवतरणों में अंतर

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छूने से ताप का जो ज्ञान प्राप्त होता है वह मात्रात्मक और विश्वसनीय नहीं होता। इसी कारण इस कार्य के लिए यांत्रिक उपकरण प्रयुक्त होते हैं जिनको तापमापी अथवा थर्मामीटर कहते हैं। सर्वसाधारण में जिन थर्मामीटरों का प्रचार है उनमें काच (शीशे) की एक छोटी खोखली घुंडी (बल्ब) होती है जिसमें [[पारा]] या अन्य द्रव भरा रहता है। बल्ब के साथ एक पतली नली जुड़ी रहती है। [[तापीय प्रसरण]] (थर्मल एक्स्पैंशन) के कारण द्रव नली में चढ़ जाता है और उसके यथार्थ स्थान से ताप की डिग्री का बोध होता है। इस प्रकार के थर्मामीटर १६५४ ई. के लगभग फ़्लोरेन्स में टस्कनी के ग्रैंड डयूक फ़र्डिनैंड ने प्रचलित किए थे। तापक्रम निश्चित करने के लिए इन थर्मामीटरों को सर्वप्रथम पिघलते हुए शुद्ध [[हिम]] (बरफ) में रखकर नली में द्रव की स्थिति पर चिह्न बना देते हैं। सेंटीग्रेड पैमाने में [[हिमांक]] को शून्य मानते हैं तथा इसके और [[क्वथनांक]] के बीच की दूरी को १०० बराबर भागों में बाँट देते हैं जिनमें से प्रत्येक को डिग्री कहते हैं। आजकल इस पैमाने को सेलसियस पैमाना कहते हैं। फारेनहाइट मापक्रम में पूर्वोक्त हिमांक को ३२° और रोमर में शून्य डिग्री मानते हैं किंतु फारेनहाइट में पूर्वोक्त हिमांक और जल के क्वथंनाक की दूरी १८० भागों में और रोमर में ८० भागों में विभक्त की जाती है।
 
यदि दो भिन्न द्रवों से थर्मामीटर बनाकर उपर्युक्त विधि से अंकित किए जाएँ तो हिमांक और क्वथनांक को छोड़कर अन्य तापों पर सामान्यत: उनके पाठयांकों में भेद पाया जाएगा। अत: केवल उष्मागतिकी अंकों को उसी के अनुसार शुद्ध कर लेते हैं। इस पैमाने को [[परम ताप]] (ऐब्सोल्यूट टेंपरेचर) अथवा 'केल्विन मापक्रम' भी कहा जाता हैहै। औरकिसी इसकेसूत्र पाठयांकमें ताप का संकेत अंग्रेजी में T से व्यक्तलिखा किएहै जातेतो हैं।इसका अर्थ परम ताप से है। यह [[कार्नो चक्र]] पर आधारित है और इसका शून्य, परम शून्य होता है जिसका मान '''-२७३.२°''' सेल्सियस है और जिससे न्यूनतर ताप संभव नहीं हो सकता।
 
: परम ताप (केल्विन में) = सेल्सियम में ताप + २७३
 
पूर्वोक्त शीशे-के-भीतर-द्रववाले तापमापियों की उपयोगिता सीमित ही होती है। ३००° सेल्सियस से ऊपर प्रायः विद्युतीय प्रतिरोध और ताप विद्युतीय (थर्मोइलेक्ट्रिक) थर्मामीटर प्रयुक्त होते हैं। अति उच्च ताप के मापनार्थ केवल विकिरण सिद्धांतों पर आधारित उत्तापमापियों (पायरोमीटरों) का प्रयोग होता है। शून्य डिग्री सेंटीग्रेड से नीचे गैस थर्मामीटर, विद्युतीय प्रतिरोध थर्मामीटर, हीलियम-वाष्प-दाब थर्मामीटर, और परम शून्य के निकट चुंबकीय प्रवृत्ति (मैगनेटिक ससेप्टिबिलिटी) पर आधारित थर्मामीटर प्रयुक्त होते हैं। इन सब तापमापियों के अंक या तो आदर्श गैस थर्मामीटरों से मिलाकर शुद्ध किए जाते हैं अथवा इनके शोधन के लिए उष्मागतिकी के सिद्धांतों का आश्रय लिया जाता है। (देखें, [[तापमापन]])
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