"सतलुज नदी": अवतरणों में अंतर
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== उद्गम ==
दक्षिण-पश्चिम [[तिब्बत]] में समुद्र तल से 4,600 मीटर की ऊंचाई पर इसका उद्गम मानसरोवर के निकट राक्षस ताल से है, जहां इसका स्थानीय नाम लोगचेन खम्बाव है।
उद्गम स्थल से [[हिमाचल प्रदेश]] में
== नामोल्लेख ==
[[ऋग्वेद]] के नदीसूक्त में इसे शुतुद्रि कहा गया है।<ref>[[ऋग्वेद]] 10,75,5, श्लोक: इमं में गंगे यमुने सरस्वती शुतुद्रि स्तोमं परुषण्या असिक्न्यामयदवृधे वितस्तयर्जीकीये शृणुह्मा सुषोमया।</ref>[[वैदिक काल]] में [[सरस्वती नदी]] 'शुतुद्रि' में ही मिलती थी। परवर्ती साहित्य में इसका प्रचलित नाम 'शतद्रु या शतद्रू' (सौ शाखाओं वाली) है। [[वाल्मीकि]] [[रामायण]] में केकय से [[अयोध्या]] आते समय [[भरत (रामायण)|भरत]] द्वारा शतद्रु के पार करने का वर्णन है।<ref>'ह्लादिनीं दूरपारां च प्रत्यक् स्रोतस्तरंगिणीम् शतद्रुमतस्च्छीमान्नदीमिक्ष्वाकुनन्दनः' रामायण, अयोध्या कांड 71, 2 अर्थात श्रीमान इक्ष्वाकुनन्दन भरत ने प्रसन्नता प्रदान करने वाली, चौड़े पाट वाली और पश्चिम की ओर बहने वाली शतद्रु पार की।</ref> [[महाभारत]] में पंजाब की अन्य नदियों के साथ ही शतद्रु का भी उल्लेख है।<ref>महाभारत भीष्म पर्व 9, 15, श्लोक: 'शतद्रु-चंद्रभागां च यमुनां च महानदीम्, दृषद्वतीं विपाशां च विपापां स्थूलवालुकाम्'।</ref>[[भागवत पुराण|श्रीमदभागवत]]<ref>सुषोमा शतद्रुश्चन्द्रभागामरूदवृधा वितस्ता श्रीमदभागवत 5, 18, 18</ref> में इसका चंद्रभागा तथा मरूदवृधा आदि के साथ उल्लेख है-'सुषोमा शतद्रुश्चन्द्रभागामरूदवृधा वितस्ता'।[[विष्णु पुराण]]<ref>[[विष्णु पुराण]] 2, 3, 10</ref> में शतद्रु को हिमवान पर्वत से निस्सृत कहा गया है- 'शतद्रुचन्द्रभागाद्या हिमवत्पादनिर्गताः'। वास्तव में सतलुज का स्रोत रावणह्नद नामक झील है जो मानसरोवर के पश्चिम में है। वर्तमान समय में सतलुज 'बियास' (विपासा) में मिलती है। किंतु 'दि मिहरान ऑफ़ सिंध एंड इट्रज ट्रिव्यूटेरीज' के लेखक रेबर्टी का मत है कि '1790 ई. के पहले सतलुज, बियास में नहीं मिलती थी। इस वर्ष बियास और सतलज दोनों के मार्ग बदल गए और वे सन्निकट आकर मिल गई।' शतद्रु वैदिक शुतुद्रि का रूपांतर है तथा इसका अर्थ शत धाराओं वाली नदी किया जा सकता है। जिससे इसकी अनेक उपनदियों का अस्तित्व इंगित होता है। ग्रीक लेखकों ने सतलज को हेजीड्रस कहा है। किंतु इनके ग्रंथों में इस नदी का उल्लेख बहुत कम आया है। क्योंकि [[अलक्षेंद्र]] की सेनाएं [[ब्यास नदी]] से ही वापस चली गई थी और उन्हें [[ब्यास नदी|ब्यास]] के पूर्व में स्थित देश की जानकारी बहुत थोड़ी हो सकी थी।
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