"द्वैतवाद": अवतरणों में अंतर

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इस मत में द्रव्य बीस हैं - परमात्मा, लक्ष्मी, जीव, अव्याकृत, आकाश, प्रकृति, गुणत्रय, अहंकारतत्त्व, बुद्धि, मन, इन्द्रिय, मात्रा, भूत, ब्रह्माण्ड, अविद्या, वर्ण, अन्धकार, वासना, काल, तथा प्रतिबिम्ब।
 
==द्वैतवाद और अद्वैतवाद का परस्पर खण्डन-मण्डन==
'''द्वैतवाद के खण्डन''' के लिए अद्वैतवादी [[मधुसूदन सरस्वती]] ने न्यायामृत तथा अद्वैतसिद्धि जैसे ग्रन्थों की रचना की। इसी तरह द्वैतवाद के खण्डन के लिए [[जयतीर्थ]] ने बादावली तथा [[व्यासतीर्थ]] ने न्यायामृत नामक ग्रंथों की रचना की थी। [[रामाचार्य]] ने न्यायामृत की टीका तरंगिणी नाम से लिखी तथा अद्वैतवाद का खण्डन कर द्वैतवाद की पुनर्स्थापना की। फिर तरंगिणी की आलोचना में [[ब्रह्मानन्द सरस्वती]] ने गुरुचन्द्रिका तथा लघुचंद्रिका नामक ग्रन्थ लिखे। इन ग्रन्थों को गौड़-ब्रह्मानन्दी भी कहा जाता है। [[अप्पय दीक्षित]] ने मध्वमतमुखमर्दन नामक ग्रन्थ लिखा तथा द्वैतवाद का खण्डन किया। वनमाली ने गौड़-ब्रह्मानंदीब्रह्मानन्दी तथा मध्वमुखमर्दन का खण्डन किया तथा द्वैतवाद को अद्वैतवाद के खण्डनों से बचाया।
 
इस प्रकार के खण्डन-मण्डन के आधार उपनिषदों की भिन्न व्याख्याएं रही हैं। उदाहरण के लिए, [[तत्त्वमसि|तत्त्वमसि]] का अर्थ अद्वैतवादियों ने 'वह, तू है' किया जबकि मध्वाचार्य ने इसका अर्थ निकाला 'तू, उसका है'। इसी प्रकार [[अयमात्मा ब्रह्म|अयम् आत्मा ब्रह्म]] का अद्वैतवादियों ने अर्थ निकाला, 'यह आत्मा ब्रह्म है', तथा द्वैतवादियों ने अर्थ निकाला - 'यह आत्मा वर्धनशील है'। इस प्रकार व्याख्याएं भिन्न होने से मत भी भिन्न हो गये।