"संस्मरण": अवतरणों में अंतर

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हिन्दी के प्रारंभिक संस्मरण लेखकों में पकृ सिंह शर्मा हैं। इनके अतिरिक्त [[बनारसीदास चतुर्वेदी]], [[महादेवी वर्मा]] तथा [[रामवृक्ष बेनीपुरी]] आदि हैं। चतुर्वेदी ने "संस्मरण" तथा "हमारे अपराध" शीर्षक कृतियों में अपने विविध संस्मरण आकर्षक शैली में लिखे हैं। हिन्दी के अनेक अन्य लेखकों तथा लेखिकाओं ने भी बहुत अच्छे संस्मरण लिखे हैं। उनमें से कुछ साहित्यकारों का उल्लेख करना प्रासंगिक होगा। श्रीमती महादेवी वर्मा की "स्मृति की रेखाएँ" तथा "अतीत के चलचित्र" संस्मरण साहित्य की श्रेष्ठ कृतियाँ हैं। रामबृक्ष बेनीपुरी की कृति "माटी की मूरतें" में जीवन में अनायास मिलने वाले सामान्य व्यक्तियों का सजीव एवं संवेदनात्मक कोमल चित्र्ण किया गया है।
 
इनके अतिरिक्त [[देवेन्द्र सत्यार्थी]] ने [[लोकगीत|लोकगीतों]] का संग्रह करने हेतु देश के विभिन्न क्षेत्रें की यात्रायें की थीं, इन स्थानों के संस्मरणों को भावात्मक शैली में उन्होंने लिखा है। "क्या गोरी क्या साँवली" तथा "रेखाएँ बोल उठीं" सत्यार्थी के संस्मरणों के अपने ढंग के संग्रह हैं। भदन्त-आनन्द कोसल्यायन ने अपने यात्र जीवन की विविध घटनाओं तथा परिस्थितियों के संदर्भ में जो अनेक पात्र मिले उनके सम्बन्ध में अपने संस्मरणात्मक आलेखों को दो संकलनों "जो न भूल सका" तथा "जो लिखना पड़ा" में संगृहीत किया है। [[कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर]] ने "भूले हुए चेहरे" तथा "दीपजले शंख बजे" में अपने कतिपय अच्छे और आकर्षक संस्मरण संकलित किये। संस्मरण को साहित्यिक निबन्ध की एक प्रवृत्ति भी माना जा सकता है। ऐसी रचनाओं को संस्मरणात्मक निबंध कहा जा सकता है। [[गुलाबराय]] की कृति "मेरी असफलताएँ" को संस्मरणात्मक निबन्ध की कोटि में रखा जा सकता है। हिन्दी के अन्य अनेक लेखकों ने भी अच्छे संस्मरण लिखे हैं जिनमे प्रमुख है [[राजा राधिकारमण वर्मासिंह]] की 'सावनी समां' , और 'सूरदास', [[रामधारी सिंह 'दिनकर']] की 'लोकदेव नेहरु' व संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ', डॉ [[रामकुमार वर्मा]] की 'संस्मरणों के सुमन' आदि।
 
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| 1940 || टूटा तारा (स्मरण : मौलवी साहब, देवी बाबा) || राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह
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| 1942 || गोर्की के संस्मरण || [[इलाचन्द्र जोशी]]
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| 1942 || तीस दिन मालवीय जी के साथ || [[रामनरेश त्रिपाठी]]
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| 1946 || पंच चिह्न || शांतिप्रसाद द्विवेदी