"पशुपतिनाथ मन्दिर (नेपाल)": अवतरणों में अंतर

छो 120.89.105.81 (Talk) के संपादनों को हटाकर अजीत कुमार तिवारी के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया
टैग: वापस लिया
पंक्ति 43:
किंवदंतियों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में कराया था किंतु उपलब्ध ऐतिहासिक दस्तावेज़ 13वीं शताब्दी के ही हैं। इस मंदिर की कई नकलों का भी निर्माण हुआ है जिनमें भक्तपुर (1480), ललितपुर (1566) और बनारस (19वीं शताब्दी के प्रारंभ में) शामिल हैं। मूल मंदिर कई बार नष्ट हुआ। इसे वर्तमान स्वरूप नरेश [[भूपलेंद्र मल्ला]] ने 1697 में प्रदान किया।<ref name="nbt-4aug14"/>
 
नेपाल महात्म्य और हिमवतखंड पर आधारित स्थानीय किंवदंती के अनुसार भगवान शिव कैलासएक छोड़करबार पार्वतीकोवाराणसी चलाखीके पहिचाऩ्नेकेलिएअन्य देवताओं को छोड़कर बागमती नदी के किनारे स्थित मृगस्थली चले गए, जो बागमती नदी के दूसरे किनारे पर जंगल में है। भगवान शिवऩेशिव वहां पर चिंकारे का रूप धारण कर विचरणनिद्रा में चले करेँ।गए। जब देवताओं ने उन्हें खोजा और उन्हें कैलासवाराणसी वापस लाने का प्रयास किया तो उन्होंने नदी के दूसरे किनारे पर छलांग लगा दी। इस दौरान उनका सींग चार टुकडों में टूट गया। इसके बाद भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रूप में प्रकट हुए।<ref name="nbt-4aug14"/>
 
[[भारत]] के [[उत्तराखण्ड]] राज्य में स्थित प्रसिद्ध [[केदारनाथ मंदिर]] की किंवदंती के अनुसार पाण्डवों को स्वर्गप्रयाण के समय भैंसे के स्वरूप में शिव के दर्शन हुए थे जो बाद में धरती में समा गए लेकिन भीम ने उनकी पूँछ पकड़ ली थी। ऐसे में उस स्थान पर स्थापित उनका स्वरूप केदारनाथ कहलाया, तथा जहाँ पर धरती से बाहर उनका मुख प्रकट हुआ, वह पशुपतिनाथ कहलाया।{{cn}}