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इस प्रकार मनुष्य की चेतना अथवा विवेकी मन उसके अवचेतन, अथवा प्राकृतिक, मन पर अपना नियंत्रण रखता है। मनुष्य और पशु में यही विशेष भेद है। पशुओं के जीवन में इस प्रकार का नियंत्रण नहीं रहता, अतएव जैसा वे चाहते हैं वैसा करते हैं। मनुष्य चेतनायुक्त प्राणी है, अतएव कोई भी क्रिया करने के पहले वह उसके परिणाम के बारे में भली प्रकार सोच लेता है।
 
<span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">== मनोवैज्ञानिक दृष्टि से चेतना == मनोविज्ञान की दृष्टि से चेतना मानव में उपस्थित वह तत्व है जिसके कारण उसे सभी प्रकार की अनुभूतियाँ होती हैं।</span> == मानसशास्त्रीय चेतना == मनोवैज्ञानिक दृष्टीकोनातून, चेतना ही मानवी शरीरात उपस्थित आहे ज्यामुळे सर्व प्रकारचे संवेदना होतात.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">चेतना के कारण ही हम देखते, सुनते, समझते और अनेक विषय पर चिंतन करते हैं।</span> चेतनामुळे आपण अनेक विषयांवर पाहतो, ऐकतो, समजून घेतो आणि विचार करतो.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">इसी के कारण हमें सुख-दु:ख की अनुभूति भी होती है और हम इसी के कारण अनेक प्रकार के निश्चय करते तथा अनेक पदार्थों की प्राप्ति के लिए चेष्टा करते हैं।</span> यामुळे आपल्याला आनंद आणि दुःख यांचे आनंद देखील अनुभवायला मिळते आणि त्यासाठी आम्ही बरेच दृढनिश्चय करतो आणि बरेच पदार्थ मिळवण्याचा प्रयत्न करतो.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">मानव चेतना की तीन विशेषताएँ हैं।</span> मानवी चेतनेचे तीन गुण आहेत.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">वह ज्ञानात्मक, भावात्मक और क्रियात्मक होती है।</span> ती ज्ञानी, भावनिक आणि कार्यक्षम आहे.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">भारतीय दार्शनिकों ने इसे सच्चिदानंद रूप कहा है।</span> भारतीय तत्त्वज्ञांनी याला एक सचिदानंद स्वरूप म्हटले आहे.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">आधुनिक मनोवैज्ञानिकों के विचारों से उक्त निरोपज्ञा की पुष्टि होती है।</span> आधुनिक मानसशास्त्रज्ञांचे मत विश्वासांद्वारे निश्चित केले जाते</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">चेतना वह तत्व है जिसमें ज्ञान की, भाव की और व्यक्ति, अर्थात् क्रियाशीलता की अनुभूति है।</span> चेतना म्हणजे एक तत्व ज्यामध्ये ज्ञान, अर्थ आणि व्यक्तीचे संवेदना, म्हणजे क्रियाकलापांची संवेदना.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">जब हम किसी पदार्थ को जानते हैं, तो उसके स्वरूप का ज्ञान हमें होता है, उसके प्रति प्रिय अथवा अप्रिय भाव पैदा होता है और उसके प्रति इच्छा पैदा होती है, जिसके कारण या तो हम उसे अपने समीप लाते अथवा उसे अपने से दूर हटाते हैं।</span> जेव्हा आपल्याला एक पदार्थ माहित असते, तेव्हा आपल्याला त्याचे स्वभाव माहित असते, तिच्यासाठी एक प्रिय किंवा अप्रिय भावना उद्भवते आणि तिच्यासाठी उत्सुकता येते, ज्यामुळे आम्ही ते जवळ आणतो किंवा स्वतःपासून काढून टाकतो .</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">चेतना को दर्शन में स्वयंप्रकाश तत्व माना गया है।</span> तत्त्वज्ञानामध्ये चैतन्य स्वयं-प्रसार घटक म्हणून मानले जाते.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">मनोविज्ञान अभी तक चेतना के स्वरूप में आगे नहीं बढ़ सका है।</span> मनोविज्ञानाने अद्याप चेतनेच्या स्वरूपात प्रगती केली नाही.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">चेतना ही सभी पदार्थो को, जड़ चेतन, शरीर मन, निर्जीव जीवित, मस्तिष्क स्नायु आदि को बनाती है, उनका स्वरूप निरूपित करती है।</span> चेतना सर्व पदार्थ, मूळ रसायनशास्त्र, शरीर मन, जिवंत आत्मा, मेंदूचा तंत्र इत्यादी बनवते, त्याचे स्वरूप दर्शवते.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">फिर चेतना को इनके द्वारा समझाने की चेष्टा करना अविचार है।</span> मग त्यांच्याद्वारे चेतना समजावून सांगणे अनुचित आहे.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">मेगडूगल महाशय के कथनानुसार जिस प्रकार भौतिक विज्ञान की अपनी ही सोचने की विधियाँ और विशेष प्रकार के प्रदत्त हैं उसी प्रकार चेतना के विषय में चिंतन करने की अपनी ही विधियाँ और प्रदत्त हैं।</span> मोगदौगुल महासायांच्या विधानानुसार त्यांच्या स्वत: च्या विचारसरणीच्या शरीरविज्ञान पद्धती आणि विशेष प्रकार, त्यांच्या चेतनाबद्दल विचार करण्याच्या पद्धती आणि दिले जातात.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">अतएव चेतना के विषय में भौतिक विज्ञान की विधियों से न तो सोचा जा सकता है और न उसके प्रदत्त इसके काम में आ सकते हैं।</span> म्हणून, भौतिकशास्त्राची पद्धती चेतनेच्या संबंधात विचारली जाऊ शकत नाही आणि त्याच्या कार्यामध्ये दिली जाऊ शकत नाही.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">फिर भौतिक विज्ञान स्वयं अपनी उन अंतिम इकाइयों के स्वरूप के विषय में निश्चित मत प्रकाशित नहीं कर पाया है जो उस विज्ञान के आधार हैं।</span> मग भौतिकशास्त्र स्वतःच्या शेवटच्या एककांच्या स्वरुपाविषयी निश्चित मत प्रकाशित करू शकले नाही, जे त्या विज्ञानाचे आधार आहे.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">पदार्थ, शक्ति, गति आदि के विषय में अभी तक कामचलाऊ जानकारी हो सकी है।</span> सामग्री, उर्जा, गती इत्यादी बाबत पुरेशी माहिती अद्यापपर्यंत केली गेली आहे.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">अभी तक उनके स्वरूप के विषय में अंतिम निर्णय नहीं हुआ है।</span> आतापर्यंत त्यांच्या उपस्थित्याबद्दल अंतिम निर्णय घेण्यात आला नाही.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">अतएव चेतना के विषय में अंतिम निर्णय की आशा कर लेना युक्तिसंगत नहीं है।</span> म्हणून, चेतनाबद्दलच्या अंतिम निर्णयाची आशा करणे तर्कसंगत नाही.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">चेतना को अचेतन तत्व के द्वारा समझाना, अर्थात् उसमें कार्य-कारण संबंध जोड़ना सर्वथा अविवेकपूर्ण है।</span> बेशुद्ध अवयवातून चेतना समजावून सांगणे म्हणजे त्यात कारणीभूत कारणे जोडणे हा मुख्यतः निर्विवाद आहे.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">चेतना को जिन मनोवैज्ञानिकों ने जड़ पदार्थ की क्रियाओं के परिणाम के रूप में समझाने की चेष्टा की है अर्थात् जिन्होंने इसे शारीरिक क्रियाओं, स्नायुओं के स्पंदन आदि का परिणाम माना है, उन्होंने चेतना की उपस्थिति को ही समाप्त कर दिया है।</span> मूळ पदार्थांच्या क्रियांच्या परिणामस्वरूप चेतना समजावून घेण्याचा प्रयत्न करणाऱ्या मनोवैज्ञानिकांनी म्हणजेच शारीरिक क्रियाकलाप, नसाचे स्पंदने, ज्यांनी चेतनाची उपस्थिती संपविली आहे अशा लोकांचा अभ्यास केला आहे.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">उन्होंने चेतना की उपस्थिति को ही समाप्त कर दिया है।</span> त्यांनी चेतनाची उपस्थिती संपविली आहे.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">पैवलाफ और वाटसन महोदय के चिंतन का यही परिणाम हुआ है।</span> पावलॉफ आणि वॉटसन सर यांच्या विचारसरणीचा हा परिणाम आहे.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">उनके कथनानुसार मन अथवा चेतना के विषय में मनोविज्ञान में सोचना ही व्यर्थ है।</span> त्याच्या कथेनुसार, मनोविज्ञान किंवा मनातील चेतना बद्दल विचार करणे बेकार आहे.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">मनोविज्ञान का विषय मनुष्य का दृश्यमान व्यवहार ही होना चाहिए।</span> मनोविज्ञानाचा विषय मनुष्याचे दृश्यमान वर्तन असावा.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">चेतना के शरीर में संबंध के विषय में मनोवैज्ञानिकों के विभिन्न मत हैं।</span> शरीरात चेतनेच्या संबंधात मनोवैज्ञानिकांच्या विविध मते आहेत.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">कुछ के अनुसार मनुष्य के बृहत् मस्तिष्क में होनेवाली क्रियाओं, अर्थात् कुछ नाड़ियों के स्पंदन का परिणाम ही चेतना है।</span> काहीांच्या मते, चेतना हे मानवी मनाच्या क्रियांच्या परिणामाचे कारण आहे, ही काही नाडींची नाडी आहे.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">यह अपने में स्वतंत्र कोई तत्व नहीं है।</span> हे स्वतःमध्ये एक स्वतंत्र घटक नाही.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">दूसरों के अनुसार चेतना स्वयं तत्व है और उसका शरीर से आपसी संबंध है, अर्थात् चेतना में होनेवाली क्रियाएँ शरीर को प्रभावित करती हैं।</span> इतरांच्या मते, चेतना हे स्वतःचे तत्व आहे आणि त्याच्या शरीराशी परस्पर संबंध आहे म्हणजेच, चेतनामध्ये होणारी क्रिया शरीरावर प्रभाव टाकते.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">कभी-कभी चेतना की क्रियाओं से शरीर प्रभावित नहीं होता और कभी शरीर की क्रियाओं से चेतना प्रभावित नहीं होती।</span> कधीकधी शरीर चेतनांच्या कृतींवर परिणाम होत नाही आणि कधीकधी चेतना शरीराच्या कृत्यांनी प्रभावित होत नाही.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">एक मत के अनुसार शरीर चेतना के कार्य करने का यंत्र मात्र हैं, जिसे वह कभी उपयोग में लाती है और कभी नहीं लाती।</span> एका मतेनुसार, चेतनावर काम करण्याचा एकमात्र साधन म्हणजे ते वापरते आणि ते कधीही आणत नाही.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">परंतु यदि यंत्र बिगड़ जाए, अथवा टूट जाए, तो चेतना अपने कामों के लिए अपंग हो जाती है।</span> परंतु जर मशीन खराब होते किंवा ब्रेक होते, तर चेतना त्याच्या कृत्यांसाठी अपंग होते.</span> <span class="notranslate" onmouseover="_tipon(this)" onmouseout="_tipoff()"><span class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">कुछ गंभीर मनोवैज्ञानिक विचारकों द्वारा विज्ञान की वर्तमान प्रगति की अवस्था में उपर्युक्त मत ही सर्वोत्तम माना गया है।</span> उपरोक्त मत काही गंभीर मनोवैज्ञानिक विचारवंतांनी सध्याच्या विज्ञानाच्या स्थितीत सर्वोत्तम मानले आहे.</span>
== मनोवैज्ञानिक दृष्टि से चेतना ==
मनोविज्ञान की दृष्टि से चेतना मानव में उपस्थित वह तत्व है जिसके कारण उसे सभी प्रकार की अनुभूतियाँ होती हैं। चेतना के कारण ही हम देखते, सुनते, समझते और अनेक विषय पर चिंतन करते हैं। इसी के कारण हमें सुख-दु:ख की अनुभूति भी होती है और हम इसी के कारण अनेक प्रकार के निश्चय करते तथा अनेक पदार्थों की प्राप्ति के लिए चेष्टा करते हैं।
 
मानव चेतना की तीन विशेषताएँ हैं। वह ज्ञानात्मक, भावात्मक और क्रियात्मक होती है। भारतीय दार्शनिकों ने इसे सच्चिदानंद रूप कहा है। आधुनिक मनोवैज्ञानिकों के विचारों से उक्त निरोपज्ञा की पुष्टि होती है। चेतना वह तत्व है जिसमें ज्ञान की, भाव की और व्यक्ति, अर्थात् क्रियाशीलता की अनुभूति है। जब हम किसी पदार्थ को जानते हैं, तो उसके स्वरूप का ज्ञान हमें होता है, उसके प्रति प्रिय अथवा अप्रिय भाव पैदा होता है और उसके प्रति इच्छा पैदा होती है, जिसके कारण या तो हम उसे अपने समीप लाते अथवा उसे अपने से दूर हटाते हैं।
 
चेतना को दर्शन में स्वयंप्रकाश तत्व माना गया है। मनोविज्ञान अभी तक चेतना के स्वरूप में आगे नहीं बढ़ सका है। चेतना ही सभी पदार्थो को, जड़ चेतन, शरीर मन, निर्जीव जीवित, मस्तिष्क स्नायु आदि को बनाती है, उनका स्वरूप निरूपित करती है। फिर चेतना को इनके द्वारा समझाने की चेष्टा करना अविचार है। मेगडूगल महाशय के कथनानुसार जिस प्रकार भौतिक विज्ञान की अपनी ही सोचने की विधियाँ और विशेष प्रकार के प्रदत्त हैं उसी प्रकार चेतना के विषय में चिंतन करने की अपनी ही विधियाँ और प्रदत्त हैं। अतएव चेतना के विषय में भौतिक विज्ञान की विधियों से न तो सोचा जा सकता है और न उसके प्रदत्त इसके काम में आ सकते हैं। फिर भौतिक विज्ञान स्वयं अपनी उन अंतिम इकाइयों के स्वरूप के विषय में निश्चित मत प्रकाशित नहीं कर पाया है जो उस विज्ञान के आधार हैं। पदार्थ, शक्ति, गति आदि के विषय में अभी तक कामचलाऊ जानकारी हो सकी है। अभी तक उनके स्वरूप के विषय में अंतिम निर्णय नहीं हुआ है। अतएव चेतना के विषय में अंतिम निर्णय की आशा कर लेना युक्तिसंगत नहीं है। चेतना को अचेतन तत्व के द्वारा समझाना, अर्थात् उसमें कार्य-कारण संबंध जोड़ना सर्वथा अविवेकपूर्ण है।
 
चेतना को जिन मनोवैज्ञानिकों ने जड़ पदार्थ की क्रियाओं के परिणाम के रूप में समझाने की चेष्टा की है अर्थात् जिन्होंने इसे शारीरिक क्रियाओं, स्नायुओं के स्पंदन आदि का परिणाम माना है, उन्होंने चेतना की उपस्थिति को ही समाप्त कर दिया है। उन्होंने चेतना की उपस्थिति को ही समाप्त कर दिया है। पैवलाफ और वाटसन महोदय के चिंतन का यही परिणाम हुआ है। उनके कथनानुसार मन अथवा चेतना के विषय में मनोविज्ञान में सोचना ही व्यर्थ है। मनोविज्ञान का विषय मनुष्य का दृश्यमान व्यवहार ही होना चाहिए।
 
चेतना के शरीर में संबंध के विषय में मनोवैज्ञानिकों के विभिन्न मत हैं। कुछ के अनुसार मनुष्य के बृहत् मस्तिष्क में होनेवाली क्रियाओं, अर्थात् कुछ नाड़ियों के स्पंदन का परिणाम ही चेतना है। यह अपने में स्वतंत्र कोई तत्व नहीं है। दूसरों के अनुसार चेतना स्वयं तत्व है और उसका शरीर से आपसी संबंध है, अर्थात् चेतना में होनेवाली क्रियाएँ शरीर को प्रभावित करती हैं। कभी-कभी चेतना की क्रियाओं से शरीर प्रभावित नहीं होता और कभी शरीर की क्रियाओं से चेतना प्रभावित नहीं होती। एक मत के अनुसार शरीर चेतना के कार्य करने का यंत्र मात्र हैं, जिसे वह कभी उपयोग में लाती है और कभी नहीं लाती। परंतु यदि यंत्र बिगड़ जाए, अथवा टूट जाए, तो चेतना अपने कामों के लिए अपंग हो जाती है। कुछ गंभीर मनोवैज्ञानिक विचारकों द्वारा विज्ञान की वर्तमान प्रगति की अवस्था में उपर्युक्त मत ही सर्वोत्तम माना गया है।
 
== चेतना के स्तर ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/चेतना" से प्राप्त