"महादेवी वर्मा": अवतरणों में अंतर
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महादेवी का कार्यक्षेत्र लेखन, संपादन और अध्यापन रहा। उन्होंने इलाहाबाद में [[प्रयाग महिला विद्यापीठ]] के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। यह कार्य अपने समय में महिला-शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम था। इसकी वे प्रधानाचार्य एवं कुलपति भी रहीं। १९३२ में उन्होंने महिलाओं की प्रमुख पत्रिका ‘[[चाँद (पत्रिका)|चाँद]]’ का कार्यभार संभाला। १९३० में नीहार, १९३२ में रश्मि, १९३४ में नीरजा, तथा १९३६ में सांध्यगीत नामक उनके चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए। १९३९ में इन चारों काव्य संग्रहों को उनकी कलाकृतियों के साथ वृहदाकार में ''[[यामा]]'' शीर्षक से प्रकाशित किया गया। उन्होंने [[गद्य]], [[काव्य]], [[शिक्षा]] और [[चित्रकला]] सभी क्षेत्रों में नए आयाम स्थापित किये। इसके अतिरिक्त उनकी 18 काव्य और गद्य कृतियां हैं जिनमें ''[[मेरा परिवार]]'', ''[[स्मृति की रेखाएं]]'', ''[[पथ के साथी]]'', ''[[शृंखला की कड़ियाँ]]'' और [[अतीत के चलचित्र]] प्रमुख हैं। सन १९५५ में महादेवी जी ने इलाहाबाद में [[साहित्यकार संसद]] की स्थापना की और पं [[इलाचंद्र जोशी]] के सहयोग से [[साहित्यकार]] का संपादन संभाला। यह इस संस्था का मुखपत्र था। उन्होंने भारत में महिला कवि सम्मेलनों की नीव रखी।<ref>{{cite book |last= |first= |title= सुधा (मासिक पत्रिका) |year=मई 1933 |publisher= |location=लखनऊ |id= |page= |access-date= 30 मार्च 2007}}</ref>
इस प्रकार का पहला अखिल भारतवर्षीय कवि सम्मेलन १५ अप्रैल १९३३ को [[सुभद्रा कुमारी चौहान]] की अध्यक्षता में प्रयाग महिला विद्यापीठ में संपन्न हुआ।<ref>{{cite book |last= |first= |title= चाँद (मासिक पत्रिका) |year=मई 1933 |publisher= |location=लखनऊ |id= |page= |access-date=30 मार्च 2007}}</ref> वे हिंदी साहित्य में रहस्यवाद की प्रवर्तिका भी मानी जाती हैं।<ref>{{cite web |url= http://www.sawnet.org/books/authors.php?Verma+Mahadevi|title= Mahadevi Verma|access-date=[[30 मार्च]] [[2007]]|format= एचटीएम|publisher= सॉनेट| language = en}}</ref>
महादेवी [[बौद्ध धर्म]] से बहुत प्रभावित थीं। [[महात्मा गांधी]] के प्रभाव से उन्होंने जनसेवा का व्रत लेकर [[झूसी]] में कार्य किया और [[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]] में भी हिस्सा लिया। १९३६ में नैनीताल से २५ किलोमीटर दूर रामगढ़ कसबे के उमागढ़ नामक गाँव में महादेवी वर्मा ने एक बँगला बनवाया था। जिसका नाम उन्होंने मीरा मंदिर रखा था। जितने दिन वे यहाँ रहीं इस छोटे से गाँव की शिक्षा और विकास के लिए काम करती रहीं। विशेष रूप से महिलाओं की शिक्षा और उनकी आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए उन्होंने बहुत काम किया। आजकल इस बंगले को महादेवी साहित्य संग्रहालय के नाम से जाना जाता है।<ref>{{cite web |url=http://www.kmvn.org/famouspersonalities.aspx|title= Famous Personalities Mahadevi Verma|access-date=[[30 मार्च]] [[2007]]|format= एएसपीएक्स|publisher= कुमाऊँ मंडल विकास निगम लिमिटेड| language = en}}</ref><ref>{{cite web |url=http://www.indradhanushindia.org/magazine/oct2007/13.htm|title=महादेवी पहाड़ों का वसंत मनाती थीं |access-date=[[10 नवंबर]] [[2007]]|format= एचटीएम|publisher=इंद्रधनुष इंडिया |language=}}</ref> शृंखला की कड़ियाँ में स्त्रियों की मुक्ति और विकास के लिए उन्होंने जिस साहस व दृढ़ता से आवाज़ उठाई हैं और जिस प्रकार सामाजिक रूढ़ियों की निंदा की है उससे उन्हें महिला मुक्तिवादी भी कहा गया।<ref>{{cite web |url=
उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद नगर में बिताया। ११ सितंबर १९८७ को इलाहाबाद में रात ९ बजकर ३० मिनट पर उनका देहांत हो गया।
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