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उसकाल में जो आम-बोलचाल की भारतीय उपमहादीप की उत्तरभारत में बोली जाने वाली भाषाएं प्राचीन प्राकृत थीं ,उनमें गोतम बुुद्ध ने अपनी अनुुुभव आधारित सिक्खाओं(शिक्षाओं) को अपने सेक्ख-अनुचरों ( शिष्य्यों) को सिखाया । जिसे बुुद्धमुख से पाये जाने कारण "पालि" कहा जाने लगा ।
🌺आज के समय मे लोग पालि शब्द को ही भासा(भाषा) कहने लगे हैं क्योंकि भगवा बुद्ध के वचन ८२००० हैं एवं २००० वचन उनके अरहत शिष्यों के हैं ,जो कुल ८४००० वचन यानि सुत्त (stanzas) हैं जिन्हें भगवा के मुख से अनुमोदित (varified) कहा जाता है थेरवाद (यानि भगवा गोतम बुद्ध के live शिष्यों द्वारा चलाया पन्थ) द्वारा ऐसे के ऐसे पथम/पठम (प्रथम संस्कृ०) भिक्खु सम्मेलन द्वारा अनुमोदित हैं जहां भगवान गोतम बुद्ध के परिचारक भन्ते! आनन्द मौजूद थे जिन्हें वे ८४००० ही नहीं वरन अन्य जो सेक्ख (learnings)भगवा गीतंगोतम बुद्ध द्वारा कहे गए थे सब्ब (all) कण्ठस्थ थे ,टैब वे उन ८४००० सुत्तों(stanzas)में आ गए थे तो उनका अनुमोदन उनके द्वाराभी किया गया जबकि अन्य ५००अरहत भिक्खु जो उस पथम संगीति में सम्मिलित हुए थे उनके भी द्वारा अनुमोदित हुए । कालान्तर उस बुद्धवचन को ही भगवा बुद्ध के मुखर-विन्द से प्राप्त होने के कारण "पालि" कहा जाने लगा ।जबकि उनकी भाषा हैं " पाचीन-पाक्कत जो १० से १२ प्रकार की जम्मुदीप में बोली जाती थीं ।