"अयोध्या प्रसाद खत्री": अवतरणों में अंतर
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==कार्यक्षेत्र==
[[भारतेंदु हरिश्चंद्र|भारतेंदु]] युग से [[हिन्दी]]-[[साहित्य]] में आधुनिकता की शुरूआत हुई। इसी दौर में बड़े पैमाने पर [[भाषा]] और विषय-वस्तु में बदलाव आया। इतिहास के उस कालखंड में, जिसे हम भारतेंदु युग के नाम से जानते हैं, [[खड़ीबोली]] हिन्दी गद्य की भाषा बन गई लेकिन [[पद्य]] की भाषा के रूप में [[ब्रजभाषा]] का बोलबाला कायम रहा। अयोध्या प्रसाद खत्री ने [[गद्य]] और पद्य की भाषा के अलगाव को गलत मानते हुए इसकी एकरूपता पर जोर दिया। पहली बार इन्होंने साहित्य जगत का ध्यान इस मुद्दे की तरफ
जिसका [[ग्रियर्सन]] के साथ [[भारतेंदु मंडल]] के अनेक लेखकों ने प्रतिवाद किया तो [[फ्रेडरिक पिन्काट]] ने समर्थन। इस दृष्टि से यह भाषा, धर्म, जाति, राज्य आदि क्षेत्रीयताओं के सामूहिक उद्धोष का नवजागरण था।<ref>{{cite web |url= http://deshkaal.blogspot.com/2007/11/blog-post_12.html|title=ज़्यादा घातक है आज का साम्राज्यवाद|accessmonthday=[[४ दिसंबर]]|accessyear=[[२००७]]|format= एचटीएमएल|publisher=देशकाल|language=}}</ref>
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