"राजेन्द्र प्रसाद": अवतरणों में अंतर

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{{स्रोत कम|date=दिसम्बर 2015}}
'''[http://www.maabharati.com/2018/12/Dr-Rajendra-Prasad.html]'''{{Infobox Officeholder
| name =राजेन्द्र प्रसाद
| image = Food Minister Rajendra Prasad during a radio broadcast in Dec 1947 cropped.jpg
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'''[http://www.maabharati.com/2018/12/Dr-Rajendra-Prasad.html राजेन्द्र प्रसाद]''' (3 दिसम्बर 1884 – 28 फरवरी 1963) [[भारत]] के प्रथम [[राष्ट्रपति]] थे।<ref>[http://www.presidentofindia.nic.in/former-presidents-hi.htm भारत के पूर्व राष्ट्रपति]. Presidentofindia.nic.in. अभिगमन तिथि: 14 अक्टूबर 2017.</ref> वे [[भारतीय स्वाधीनता आंदोलन]] के प्रमुख नेताओं में से थे जिन्होंने [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने [[भारतीय संविधान]] के निर्माण में भी अपना योगदान दिया था जिसकी परिणति [[२६ जनवरी]] [[१९५०]] को [[भारत]] के एक [[गणतंत्र]] के रूप में हुई थी। [[राष्ट्रपति]] होने के अतिरिक्त उन्होंने स्वाधीन भारत में केन्द्रीय मन्त्री के रूप में भी कुछ समय के लिए काम किया था। पूरे देश में अत्यन्त लोकप्रिय होने के कारण उन्हें ''[http://www.maabharati.com/2018/12/Dr-Rajendra-Prasad.html '''राजेन्द्र बाबू''']'' या '''देशरत्न''' कहकर पुकारा जाता था।
 
[http://www.maabharati.com/2018/12/Dr-Rajendra-Prasad.html राजेद्र प्रसाद के जीवन के अनसुने किस्से यहाँ पढ़े]
 
== पूर्वज ==
[http://www.maabharati.com/2018/12/Dr-Rajendra-Prasad.html '''राजेन्द्र प्रसाद'''] के पूर्वज मूलरूप से कुआँगाँव, [[अमोढ़ा]] ([[उत्तर प्रदेश]]) के निवासी थे। यह एक [[कायस्थ]] परिवार था। कुछ कायस्थ परिवार इस स्थान को छोड़ कर [[बलिया]] जा बसे थे। कुछ परिवारों को बलिया भी रास नहीं आया इसलिये वे वहाँ से बिहार के जिला [[सारन]] के एक गाँव [[जीरादेई]] में जा बसे। इन परिवारों में कुछ शिक्षित लोग भी थे। इन्हीं परिवारों में राजेन्द्र प्रसाद के पूर्वजों का परिवार भी था। जीरादेई के पास ही एक छोटी सी रियासत थी - हथुआ। चूँकि [http://www.maabharati.com/2018/12/Dr-Rajendra-Prasad.html '''राजेन्द्र बाबू'''] के दादा पढ़े-लिखे थे, अतः उन्हें हथुआ रियासत की दीवानी मिल गई। पच्चीस-तीस सालों तक वे उस रियासत के दीवान रहे। उन्होंने स्वयं भी कुछ जमीन खरीद ली थी। राजेन्द्र बाबू के पिता महादेव सहाय इस जमींदारी की देखभाल करते थे। राजेन्द्र बाबू के चाचा जगदेव सहाय भी घर पर ही रहकर जमींदारी का काम देखते थे। अपने पाँच भाई-बहनों में वे सबसे छोटे थे इसलिए पूरे परिवार में सबके प्यारे थे।
 
उनके चाचा के चूँकि कोई संतान नहीं थी इसलिए वे राजेन्द्र प्रसाद को अपने पुत्र की भाँति ही समझते थे। दादा, पिता और चाचा के लाड़-प्यार में ही राजेन्द्र बाबू का पालन-पोषण हुआ। दादी और माँ का भी उन पर पूर्ण प्रेम बरसता था।
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== प्रारंभिक जीवन ==
[http://www.maabharati.com/2018/12/Dr-Rajendra-Prasad.html राजेन्द्र प्रसाद] के पिता महादेव सहाय [[संस्कृत]] एवं [[फारसी]] के विद्वान थे एवं उनकी माता कमलेश्वरी देवी एक धर्मपरायण महिला थीं।<ref>[http://books.google.co.in/books?id=r2C2InxI0xAC&pg=PA1&dq=rajendra+prasad&hl=en&ei=cPqZTY3tKpHprQf_69X9Cw&sa=X&oi=book_result&ct=result&resnum=1&ved=0CDUQ6AEwADgK#v=onepage&q&f=false Presidents of India, 1950-2003 - Janak Raj Jai - Google Books<!-- Bot generated title -->]</ref> पाँच वर्ष की उम्र में ही राजेन्द्र बाबू ने एक मौलवी साहब से [[फारसी]] में शिक्षा शुरू किया। उसके बाद वे अपनी प्रारंभिक शिक्षा के लिए [[छपरा]] के जिला स्कूल गए। राजेंद्र बाबू का विवाह उस समय की परिपाटी के अनुसार बाल्य काल में ही, लगभग 13 वर्ष की उम्र में, राजवंशी देवी से हो गया। विवाह के बाद भी उन्होंने [[पटना]] की टी० के० घोष अकादमी से अपनी पढाई जारी रखी। उनका वैवाहिक जीवन बहुत सुखी रहा और उससे उनके अध्ययन अथवा अन्य कार्यों में कोई रुकावट नहीं पड़ी।
 
लेकिन वे जल्द ही जिला स्कूल छपरा चले गये और वहीं से 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने [[कोलकाता विश्वविद्यालय]] की प्रवेश परीक्षा दी। उस प्रवेश परीक्षा में उन्हें प्रथम स्थानपप हुआ था।.<ref>[http://books.google.co.in/books?id=r2C2InxI0xAC&pg=PA1&dq=rajendra+prasad&hl=en&ei=cPqZTY3tKpHprQf_69X9Cw&sa=X&oi=book_result&ct=result&resnum=1&ved=0CDUQ6AEwADgK#v=onepage&q&f=false Presidents of India, 1950-2003 - Janak Raj Jai - Google Books<!-- Bot generated title -->]</ref> सन् 1902 में उन्होंने [[कोलकाता]] के प्रसिद्ध [[प्रेसिडेंसी कॉलेज, कोलकाता|प्रेसिडेंसी कॉलेज]] में दाखिला लिया। उनकी प्रतिभा ने [[गोपाल कृष्ण गोखले]] तथा ''बिहार-विभूति'' [[अनुग्रह नारायण सिन्हा]] जैसे विद्वानों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। 1915 में उन्होंने स्वर्ण पद के साथ विधि परास्नातक (एलएलएम) की परीक्षा पास की और बाद में लॉ के क्षेत्र में ही उन्होंने डॉक्ट्रेट की उपाधि भी हासिल की। राजेन्द्र बाबू कानून की अपनी पढाई का अभ्यास [[भागलपुर]], [[बिहार]] में कया करते थे।]].<ref>[http://books.google.co.in/books?id=XsynRkUMJT4C&printsec=frontcover&dq=rajendra+prasad&hl=en&ei=1KKZTYa8PIL5cbrtmJIH&sa=X&oi=book_result&ct=result&resnum=8&ved=0CFIQ6AEwBzgU#v=onepage&q&f=false राजेंद्र बाबू: पत्रों के आईने में - Rajendra Prasad, Tara Sinha - Google Books<!-- Bot generated title -->]</ref>
 
== हिन्दी एवं भारतीय भाषा-प्रेम ==
यद्यपि [http://www.maabharati.com/2018/12/Dr-Rajendra-Prasad.html राजेन्द्र बाबू] की पढ़ाई फारसी और उर्दू से शुरू हुई थी तथापि बी० ए० में उन्होंने [[हिंदी]] ही ली। वे अंग्रेजी, हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी व [[बंगाली भाषा]] और साहित्य से पूरी तरह परिचित थे तथा इन भाषाओं में सरलता से प्रभावकारी व्याख्यान भी दे सकते थे। [[गुजराती]] का व्यावहारिक ज्ञान भी उन्हें था। एम० एल० परीक्षा के लिए हिन्दू कानून का उन्होंने संस्कृत ग्रंथों से ही अध्ययन किया था। हिन्दी के प्रति उनका अगाध प्रेम था। हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं जैसे भारत मित्र, भारतोदय, कमला आदि में उनके लेख छपते थे। उनके निबन्ध सुरुचिपूर्ण तथा प्रभावकारी होते थे। 1912 ई. में जब अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन का अधिवेशन [[कोलकाता|कलकत्ते]] में हुआ तब स्वागतकारिणी समिति के वे प्रधान मन्त्री थे। 1920 ई. में जब [[अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन]] का 10वाँ अधिवेशन पटना में हुआ तब भी वे प्रधान मन्त्री थे। 1923 ई. में जब सम्मेलन का अधिवेशन कोकीनाडा में होने वाला था तब वे उसके अध्यक्ष मनोनीत हुए थे परन्तु रुग्णता के कारण वे उसमें उपस्थित न हो सके अत: उनका भाषण [[जमनालाल बजाज]] ने पढ़ा था। 1926 ई० में वे बिहार प्रदेशीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के और 1927 ई० में उत्तर प्रदेशीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति थे। हिन्दी में उनकी [[आत्मकथा]] बड़ी प्रसिद्ध पुस्तक है। अंग्रेजी में भी उन्होंने कुछ पुस्तकें लिखीं। उन्होंने हिन्दी के ''देश'' और अंग्रेजी के ''पटना लॉ वीकली'' [[समाचार पत्र]] का सम्पादन भी किया था।
 
== स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ==
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== सरलता ==
[http://www.maabharati.com/2018/12/Dr-Rajendra-Prasad.html राजेन्द्र बाबू] की वेशभूषा बड़ी सरल थी। उनके चेहरे मोहरे को देखकर पता ही नहीं लगता था कि वे इतने प्रतिभासम्पन्न और उच्च व्यक्तित्ववाले सज्जन हैं। देखने में वे सामान्य [[किसान]] जैसे लगते थे।
 
[[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] द्वारा उन्हें ''डाक्टर ऑफ ला'' की सम्मानित उपाधि प्रदान करते समय कहा गया था - "बाबू राजेंद्रप्रसाद ने अपने जीवन में सरल व नि:स्वार्थ सेवा का ज्वलन्त उदाहरण प्रस्तुत किया है। जब वकील के व्यवसाय में चरम उत्कर्ष की उपलब्धि दूर नहीं रह गई थी, इन्हें राष्ट्रीय कार्य के लिए आह्वान मिला और उन्होंने व्यक्तिगत भावी उन्नति की सभी संभावनाओं को त्यागकर गाँवों में गरीबों तथा दीन कृषकों के बीच काम करना स्वीकार किया।"
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उनकी वंशावली को जीवित रखने का कार्य उनके प्रपौत्र अशोक जाहन्वी प्रसाद कर रहे हैं। वे पेशे से एक अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति-प्राप्त [[वैज्ञानिक]] एवं [[मनोचिकित्सक]] हैं। उन्होंने बाई-पोलर डिसऑर्डर की चिकित्सा में [[लीथियम]] के सुरक्षित विकल्प के रूप में सोडियम वैलप्रोरेट की खोज की थी। अशोक जी प्रतिष्ठित अमेरिकन अकैडमी ऑफ आर्ट ऐण्ड साइंस के सदस्य भी हैं।
==कृतियाँ==
[http://www.maabharati.com/2018/12/Dr-Rajendra-Prasad.html राजेन्द्र बाबू] ने अपनी [[आत्मकथा]] (१९४६) के अतिरिक्त कई पुस्तकें भी लिखी जिनमें ''बापू के कदमों में''बाबू(१९५४), ''इण्डिया डिवाइडेड'' (१९४६), ''सत्याग्रह ऐट चम्पारण'' (१९२२), ''गान्धीजी की देन'', ''भारतीय संस्कृति'' व ''खादी का अर्थशास्त्र'' इत्यादि उल्लेखनीय हैं।
 
== भारत रत्न ==
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{{commonscat|Rajendra Prasad|राजेन्द्र प्रसाद}}
 
* [http://presidentofindiawww.nicmaabharati.incom/formerpresidents2018/12/Dr-Rajendra-Prasad.html भारत केरत्न पूर्व राष्ट्रपति:डॉ राजेन्द्र प्रसाद के जीवन के अनसुने किस्से]
*[http://presidentofindia.nic.in/formerpresidents.html भारत के पूर्व राष्ट्रपति: राजेन्द्र प्रसाद]
* [http://www.indiatogether.org/people/rajendra_prasad.htm राजेन्द्र प्रसाद का जीवन-चरित]
* [http://www.congresssandesh.com/AICC/history/presidents/dr_rajendra_prasad.htm कांग्रेस पार्टी: राजेन्द्र प्रसाद]