"मणिकर्णिका घाट": अवतरणों में अंतर
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इस घाट से जुड़ी दो कथाएं हैं। एक के अनुसार भगवान [[विष्णु]] ने शिव की तपस्या करते हुए अपने [[सुदर्शन चक्र]] से यहां एक कुण्ड खोदा था। उसमें तपस्या के समय आया हुआ उनका स्वेद भर गया। जब शिव वहां प्रसन्न हो कर आये तब विष्णु के कान की मणिकर्णिका उस कुंड में गिर गई थी।
दूसरी कथा के अनुसार भगवाण शिव को अपने भक्तों से छुट्टी ही नहीं मिल पाती थी। देवी [[पार्वती]] इससे परेशान हुईं और शिवजी को रोके रखने हेतु अपने कान की मणिकर्णिका वहीं छुपा दी और शिवजी से उसे ढूंढने को कहा। शिवजी उसे ढूंढ नहीं पाये और आज तक जिसकी भी अन्त्येष्टि उस घाट पर की जाती है, वे उससे पूछते हैं कि क्या उसने देखी है?इस घाट की विशेषता ये हैं, कि यहां लगातार हिन्दू अन्त्येष्टि होती रहती हैं व घाट पर चिता की अग्नि लगातार जलती ही रहती है, कभी भी बुझने नहीं पाती। इसी कारण इसको महाश्मशान नाम से भी जाना जाता है। एक चिता की अग्नि समाप्त होने तक दूसरी चिता में आग लगा ही दी जाती है,24 घंटे ऐसा ही चलता है।वैसे तो लोग श्मसान घाट में जाना नही चाहते, पर यहाँ देश विदेश से लोग इस घाट का दर्शन भी करने आते है।इस घाट पर ये एहसास होता है कि जीवन का अंतिम सत्य यही है। वाराणसी में 384 घाटों में सबसे चर्चित घाट में से एक है मणिकर्णिका घाट।
==सन्दर्भ==
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