"दिल्ली सल्तनत": अवतरणों में अंतर

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[[मोहम्मद ग़ौरी]] का गुलाम [[कुतुब-उद-दीन ऐबक]], गुलाम वंश का पहला सुल्तान था। ऐबक का साम्राज्य पूरे [[उत्तर भारत]] तक फैला था। इसके बाद [[ख़िलजी वंश]] ने [[मध्य भारत]] पर कब्ज़ा किया परन्तु [[भारतीय उपमहाद्वीप]] को संगठित करने में असफल रहा।<ref>प्रदीप बरुआ ''The State at War in South Asia'', ISBN 978-0803213449, पृष्ठ 29-30</ref>
 
इस सल्तनत ने न केवल बहुत से दक्षिण एशिया के मंदिरों का विनाश किया साथ ही अपवित्र भी किया,<ref name=re2000>रिचर्ड ईटन (2000), [http://jis.oxfordjournals.org/content/11/3/283.extract Temple Desecration and Indo-Muslim States], Journal of Islamic Studies, 11(3), pp 283-319</ref> पर इसने [[भारतीय-इस्लामिक वास्तुकला]] के उदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।<ref>A. Welch, “Architectural Patronage and the Past: The Tughluq Sultans of India,” Muqarnas 10, 1993, ब्रिल पब्लिशर, पृष्ठ 311-322</ref><ref>जे. ए. पेज, [http://www.archive.org/stream/guidetothequtbde031434mbp#page/n15/mode/2up/search/temple Guide to the Qutb], Delhi, Calcutta, 1927, पृष्ठ 2-7</ref> दिल्ली सल्तनत मुस्लिम इतिहास के कुछ कालखंडों में है जहां किसी महिला ने सत्ता संभाली।<ref>Bowering et al., The Princeton Encyclopedia of Islamic Political Thought, ISBN 978-0691134840, प्रिंसटन विश्विद्यालय प्रेस</ref> १५२६1526 में [[मुगल सल्तनत]] द्वारा इस इस साम्राज्य का अंत हुआ।
 
== पृष्ठभूमि ==
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[[कुतुब-उद-दीन ऐबक]] एक गुलाम था, जिसने दिल्ली सल्तनत की स्थापना की। वह मूल रूप से तुर्क था।<ref>{{cite web|author=ब्रुस आर. गोर्डोन |url=http://my.raex.com/~obsidian/siberia.html#Cumans |title=Nomads of the Steppe |publisher=My.raex.com |accessdate=2012-01-20}}</ref> उसके गुलाम होने के कारण ही इस वंश का नाम गुलाम वंश पड़ा।<ref>जैक्सन पी. (1990), The Mamlūk institution in early Muslim India, Journal of the Royal Asiatic Society of Great Britain & Ireland (New Series), 122(02), pp 340-358</ref>
 
ऐबक चार साल तक दिल्ली का सुल्तान बना रहा। उसकी मृत्यु के बाद 1210 इस्वी में आरामशाह ने सत्ता संभाली परन्तु उसकी हत्या [[इल्तुतमिश]] ने 1211 इस्वी में कर दी।<ref>सी.ई. बोसवर्थ, The New Islamic Dynasties, Columbia University Press (1996)</ref> इल्तुतमिश की सत्ता अस्थायी थी और बहुत से मुस्लिम अमीरों ने उसकी सत्ता को चुनौती दी। कुछ कुतुबी अमीरों ने उसका साथ भी दिया। उसने बहुत से अपने विरोधियों का क्रूरता से दमन करके अपनी सत्ता को मजबूत किया।<ref>Barnett & Haig (1926), A review of History of Mediaeval India, from ad 647 to the Mughal Conquest - Ishwari Prasad, Journal of the Royal Asiatic Society of Great Britain & Ireland (New Series), 58(04), pp 780-783</ref> इल्तुतमिश ने मुस्लिम शासकों से युद्ध करके मुल्तान और बंगाल पर नियंत्रण स्थापित किया, जबकि रणथम्भौर और शिवालिक की पहाड़ियों को हिन्दू शासकों से प्राप्त किया। इल्तुतमिश ने १२३६1236 इस्वी तक शासन किया। इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद दिल्ली सल्तनत के बहुत से कमजोर शासक रहे जिसमे उसकी पुत्री [[रजिया सुल्ताना]] भी शामिल है। यह क्रम [[गयासुद्दीन बलबन]], जिसने 1266 से 1287 इस्वी तक शासन किया था, के सत्ता सँभालने तक जारी रहा।<ref name="pj29">Peter Jackson (2003), The Delhi Sultanate: A Political and Military History, Cambridge University Press, ISBN 978-0521543293, pp 29-48</ref><ref name="cads">Anzalone, Christopher (2008), "Delhi Sultanate", in Ackermann, M. E. etc. (Editors), Encyclopedia of World History 2, ISBN 978-0-8160-6386-4</ref> बलबन के बाद [[कैकूबाद]] ने सत्ता संभाली। उसने जलाल-उद-दीन फिरोज शाह खिलजी को अपना सेनापति बनाया। खिलजी ने कैकुबाद की हत्या कर सत्ता संभाली, जिससे गुलाम वंश का अंत हो गया।
 
[[File:Alai Gate and Qutub Minar.jpg|thumb|220px|अलई दरवाजा और कुतुबमीनार गुलाम और खिलजी वंश के दौरान बने।<ref name=unescoaqm/>]]
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=== खिलजी (1290 -1320)===
{{मुख्य|खिलजी वंश}}
इस वंश का पहला शासक [[जलालुद्दीन खिलजी]] था। उसने १२९०1290 इस्वी में गुलाम वंश के अंतिम शासक कैकुबाद की हत्या कर सत्ता प्राप्त की। उसने कैकुबाद को तुर्क, अफगान और फारस के अमीरों के इशारे पर हत्या की।
 
जलालुद्दीन खिलजी मूल रूप से अफगान-तुर्क मूल का था। उसने ६ वर्ष तक शासन किया। उसकी हत्या उसके भतीजे और दामाद जूना खान ने कर दी।<ref name="holt913">Holt et al., The Cambridge History of Islam - The Indian sub-continent, south-east Asia, Africa and the Muslim west, ISBN 978-0521291378, pp 9-13</ref> जूना खान ही बाद में [[अलाउद्दीन खिलजी]] नाम से जाना गया। अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सैन्य अभियान का आरम्भ कारा जागीर के सूबेदार के रूप में की, जहां से उसने मालवा (१२९२1292) और देवगिरी (१२९४1294) पर छापा मारा और भारी लूटपाट की। अपनी सत्ता पाने के बाद उसने अपने सैन्य अभियान दक्षिण भारत में भी चलाए। उसने गुजरात, मालवा, रणथम्बौर और चित्तौड़ को अपने राज्य में शामिल कर लिया।<ref>Alexander Mikaberidze, Conflict and Conquest in the Islamic World: A Historical Encyclopedia, ISBN 978-1598843361, pp 62-63</ref> उसके इस जीत का जश्न थोड़े समय तक रहा क्योंकि मंगोलों ने उत्तर-पश्चिमी सीमा से लूटमार का सिलसिला शुरू कर दिया। मंगोलों लूटमार के पश्चात वापस लौट गए और छापे मारने भी बंद कर दिए।<ref>Rene Grousset - Empire of steppes, Chagatai Khanate; Rutgers Univ Pr,New Jersey, U.S.A, 1988 ISBN 0-8135-1304-9</ref>
 
मंगोलों के वापस लौटने के पश्चात अलाउद्दीन ने अपने सेनापति मलिक काफूर और खुसरों खान की मदद से दक्षिण भारत की ओर साम्राज्य का विस्तार प्रारंभ कर दिया और भारी मात्रा में लूट का सामान एकत्र किया।<ref>Frank Fanselow (1989), Muslim society in Tamil Nadu (India): an historical perspective, Journal Institute of Muslim Minority Affairs, 10(1), pp 264-289</ref> उसके सेनापतियों ने लूट के सामान एकत्र किये और उस पर ''घनिमा'' (الْغَنيمَة, युद्ध की लूट पर कर) चुकाया, जिससे खिलजी साम्राज्य को मजबूती मिली। इन लूटों में उसे वारंगल की लूट में अब तक के मानव इतिहास का सबसे बड़ा हीरा [[कोहिनूर]] भी मिला।<ref>Hermann Kulke and Dietmar Rothermund, A History of India, 3rd Edition, Routledge, 1998, ISBN 0-415-15482-0</ref>
 
अलाउद्दीन ने कर प्रणाली में बदलाव किए, उसने अनाज और कृषि उत्पादों पर कृषि कर २०20% से बढ़ाकर ५०50% कर दिया। स्थानीय आधिकारी द्वारा एकत्र करों पर दलाली को खत्म किया। उसने आधिकारियों, कवियों और विद्वानों के वेतन भी काटने शुरू कर दिए।<ref name=holt913/> उसकी इस कर नीति ने खजाने को भर दिया, जिसका उपयोग उसने अपनी सेना को मजबूत करने में किया। उसने सभी कृषि उत्पादों और माल की कीमतों के निर्धारण के लिए एक योजना भी पेश की। कौन सा माल बेचना, कौन सा नहीं उसपर भी उसका नियंत्रण था। उसने ''सहाना-ए-मंडी'' नाम से कई मंडियां भी बनवाई।<ref name=als156>AL Srivastava, [https://archive.org/stream/sultanateofdelhi001929mbp#page/n189/mode/2up Delhi Sultanate] 5th Edition, {{ASIN|B007Q862WO}}, pp 156-158</ref> मुस्लिम व्यापारियों को इस मंडी का विशेष परमिट दिया जाता था और उनका इन मंडियों पर एकाधिकार भी था। जो इन मंडियों में तनाव फैलाते थे उन्हें मांस काटने जैसी कड़ी सजा मिलती थी। फसलों पर लिया जाने वाला कर सीधे राजकोष में जाता था। इसके कारण अकाल के समय उसके सैनिकों की रसद में कटौती नहीं होती थी।<ref name=holt913/>
 
अलाउद्दीन अपने जीते हुए साम्राज्यों के लोगों पर क्रूरता करने के लिए भी मशहूर है। इतिहासकारों ने उसे तानाशाह तक कहा है। अलाउद्दीन को यदि उसके खिलाफ किए जाने वाले षडयंत्र का पता लग जाता था तो वह उस व्यक्ति को पूरे परिवार सहित मार डालता था। १२९८1298 में, उसके डर के कारण दिल्ली के आसपास एक दिन में १५15,०००000 से ३०30,०००000 लोगों ने इस्लाम स्वीकार कर लिया।<ref name=vsoxford>Vincent A Smith, {{Google books|p2gxAQAAMAAJ|The Oxford History of India: From the Earliest Times to the End of 1911|page=217}}, Chapter 2, '''pp 231-235''', Oxford University Press</ref>
 
अलाउद्दीन की मृत्यु के पश्चात १३१६1316 में, उसके सेनापति [[मलिक काफूर]] जिसका जन्म हिन्दू परिवार में हुआ था और बाद इस्लाम स्वीकार किया था, ने सत्ता हथियाने का प्रयास किया परन्तु उसे अफगान और फारस के अमीरों का समर्थन नहीं मिला। मलिक काफूर मारा गया।<ref name="holt913"/> खिलजी वंश का अंतिम शासक अलाउद्दीन का १८18 वर्षीय पुत्र [[कुतुबुद्दीन मुबारक शाह]] था। उसने 4 वर्ष तक शासन किया और खुसरों शाह द्वारा मारा गया। [[खुसरों शाह]] का शासन कुछ महीनों में समाप्त हो गया, जब गाज़ी मलिक जो कि बाद में गयासुद्दीन तुगलक कहलाया, ने उसकी १३२०1320 इस्वी में हत्या और गद्दी पर बैठा और इस तरह खिलजी वंश का अंत तुगलक वंश का आरम्भ हुआ।<ref name=awhc/><ref name=vsoxford/>
 
=== तुग़लक़ (1320-1414)===
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[[File:Sultanat von Delhi Tughluq-Dynastie.png|thumb|दिल्ली सल्तनत १३२०-१३३० के दौरान]]
 
तुगलक वंश ने दिल्ली पर 1320 से 1414 तक राज किया। तुगलक वंश का पहला शासक गाज़ी मलिक जिसने अपने को [[गयासुद्दीन तुगलक]] के रूप में पेश किया। वह मूल रूप तुर्क-भारतीय था, जिसके पिता तुर्क और मां हिन्दू थी। गयासुद्दीन तुगलक ने पाँच वर्षों तक शासन किया और दिल्ली के समीप एक नया नगर [[तुगलकाबाद]] बसाया।<ref name=whunter>William Hunter (1903), {{Google books|5IQqAAAAYAAJ|A Brief History of the Indian Peoples|page=124}}, 23rd Edition, pp. 124-127</ref> कुछ इतिहासकारों जैसे विन्सेंट स्मिथ के अनुसार,<ref name=vsoxford2>Vincent A Smith, {{Google books|p2gxAQAAMAAJ|The Oxford History of India: From the Earliest Times to the End of 1911|page=217}}, Chapter 2, '''pp 236-242''', Oxford University Press</ref> वह अपने पुत्र जूना खान द्वारा मारा गया, जिसने १३२५1325 इस्वी में दिल्ली की गद्दी प्राप्त की। जूना खान ने स्वयं को [[मुहम्मद बिन तुगलक]] के पेश किया और २६26 वर्षों तक दिल्ली पर शासन किया।<ref>Elliot and Dowson, Táríkh-i Fíroz Sháhí of Ziauddin Barani, The History of India as Told by Its Own Historians. The Muhammadan Period (Vol 3), London, Trübner & Co</ref> उसके शासन के दौरान दिल्ली सल्तनत का सबसे अधिक भौगोलिक क्षेत्रफल रहा, जिसमे लगभग पूरा भारतीय उपमहाद्वीप शामिल था।<ref name=ebmit>[http://www.britannica.com/EBchecked/topic/396460/Muhammad-ibn-Tughluq Muḥammad ibn Tughluq] Encyclopedia Britannica</ref>
 
मुहम्मद बिन तुगलक एक विद्वान था और उसे कुरान की कुरान, फिक, कविताओं और अन्य क्षेत्रों की व्यापक जानकारियाँ थी। वह अपनें नाते-रिश्तेदारों, वजीरों पर हमेशा संदेह करता था, अपने हर शत्रु को गंभीरता से लेता था तथा कई ऐसे निर्णय लिए जिससे आर्थिक क्षेत्र में उथल-पुथल हो गया। उदाहरण के लिए, उसने चांदी के सिक्कों के स्थान पर ताम्बे के सिक्कों को ढलवाने का आदेश दिया। यह निर्णय असफल साबित हुआ क्योकि लोगों ने अपने घरों में जाली सिक्कों को ढालना शुरू कर दिया और उससे अपना [[जजिया कर]] चुकाने लगे।<ref name=vsoxford2/><ref name=ebmit/>
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[[File:A View from Daulatabad Fort.jpg|thumb|दौलताबाद के किले का एक दृश्य]]
मुहम्मद बिन तुगलक के खिलाफ १३२७1327 इस्वी से विद्रोह प्रारंभ हो गए। यह लगातार जारी रहे, जिसके कारण उसके सल्तनत का भौगोलिक क्षेत्रफल सिकुड़ता गया। दक्षिण में [[विजयनगर साम्राज्य]] का उदय हुआ जो कि दिल्ली सल्तनत द्वारा होने वाले आक्रमणों का मजबूती से प्रतिकार करने लगा।<ref>Hermann Kulke and Dietmar Rothermund, ''A History of India'', (Routledge, 1986), 188.</ref> १३३७1337 में, मुहम्मद बिन तुगलक ने चीन पर आक्रमण करने का आदेश दिया<ref name=whunter/> और अपनी सेनाओं को [[हिमालय पर्वत]] से गुजरने का आदेश दिया। इस यात्रा में कुछ ही सैनिक जीवित बच पाए। जीवित बच कर लौटने वाले असफल होकर लौटे।<ref name=vsoxford2/> उसके राज में १३२९1329-३२32 के दौरान, उसके द्वारा ताम्बे के सिक्के चलाए जाने के निर्णय के कारण राजस्व को भारी क्षति हुई। उसने इस क्षति को पूर्ण करने के लिए करों में भारी वृद्धि की। १३३८1338 में, उसके अपने भतीजे ने मालवा में बगावत कर दी, जिस पर उसने हमला किया और उसकी खाल उतार दी।<ref name=whunter/> १३३९1339 से, पूर्वी भागों में मुस्लिम सूबेदारों ने और दक्षिणी भागों से हिन्दू राजाओं ने बगावत का झंडा बुलंद किया और दिल्ली सल्तनत से अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया। मुहम्मद बिन तुगलक के पास इन बगावतों से निपटने के लिए आवश्यक संसाधन नहीं थे, जिससे उसका सम्राज्य सिकुड़ता गया।<ref name=vsoxford3>Vincent A Smith, {{Google books|p2gxAQAAMAAJ|The Oxford History of India: From the Earliest Times to the End of 1911|page=217}}, Chapter 2, '''pp 242-248''', Oxford University Press</ref> इतिहासकार वॉलफोर्ड ने लिखा है कि मुहम्मद बिन तुगलक के शासन के दौरान, भारत को सर्वाधिक अकाल झेलने पड़े, जब उसने ताम्र धातुओं के सिक्के का परिक्षण किया।<ref>Cornelius Walford (1878), {{Google books|WA8qAAAAYAAJ|The Famines of the World: Past and Present|page=3}}, '''pp 9-10'''</ref><ref>Judith Walsh, A Brief History of India, ISBN 978-0816083626, pp 70-72; Quote: "In 1335-42, during a severe famine and death in the Delhi region, the Sultanate offered no help to the starving residents."</ref> १३४७1347 में, [[बहमनी साम्राज्य]] सल्तनत से स्वतंत्र हो गया और सल्तनत के मुकाबले दक्षिण एशिया में एक नया मुस्लिम साम्राज्य बन गया।<ref name=mrpislam/>
 
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}}
मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु १३५१1351 में गुजरात के उन लोगों को पकड़ने के दौरान हो गई, जिन्होंने दिल्ली सल्तनत के खिलाफ बगावत की थी।<ref name=vsoxford3/> उसका उत्तराधिकारी [[फिरोज शाह तुगलक]] (१३५१1351-१३८८1388) था, जिसने अपने सम्राज्य की पुरानी क्षेत्र को पाने के लिए १३५९1359 में बंगाल के खिलाफ ११11 महीनें का युद्ध आरम्भ किया। परन्तु फिर भी बंगाल दिल्ली सल्तनत में शामिल न हो पाया। फिरोज शाह तुगलक ने ३७37 वर्षों तक शासन किया। उसने अपने राज्य में खाद्य पदार्थ की आपूर्ति के लिए व अकालों को रोकने के लिए [[यमुना नदी]] से एक सिंचाई हेतु नहर बनवाई। एक शिक्षित सुल्तान के रूप में, उसने अपना एक संस्मरण लिखा।<ref>Firoz Shah Tughlak, [https://archive.org/stream/cu31924073036737#page/n389/mode/2up Futuhat-i Firoz Shahi - Memoirs of Firoz Shah Tughlak], Translated in 1871 by Elliot and Dawson, Volume 3 - The History of India, Cornell University Archives</ref> इस संस्मरण में उसने लिखा कि उसने अपने पूर्ववर्तियों के उलट, अपने राज में यातना देना बंद कर दिया है। यातना जैसे कि अंग-विच्छेदन, आँखे निकाल लेना, जिन्दा व्यक्ति का शरीर चीर देना, रीढ़ की हड्डी तोड़ देना, गले में पिघला हुआ सीसा डालना, व्यक्ति को जिन्दा फूँक देना आदि शामिल था।<ref name=vsoxfordmbt>Vincent A Smith, {{Google books|p2gxAQAAMAAJ|The Oxford History of India: From the Earliest Times to the End of 1911|page=217}}, Chapter 2, '''pp 249-251''', Oxford University Press</ref> इस सुन्नी सुल्तान यह भी लिखा है कि वह सुन्नी समुदाय का धर्मान्तरण को सहन नहीं करता था, न ही उसे वह प्रयास सहन थे जिसमे हिन्दू अपने ध्वस्त मंदिरों को पुनः बनाये।<ref>Firoz Shah Tughlak, [https://archive.org/stream/cu31924073036737#page/n393/mode/2up Futuhat-i Firoz Shahi - Autobiographical memoirs], Translated in 1871 by Elliot and Dawson, Volume 3 - The History of India, Cornell University Archives, pp 377-381</ref> उसने लिखा है कि दंड के तौर पर बहुत से शिया, महदी और हिंदुओं को मृत्युदंड सुनाया। अपने संस्मरण में, उसने अपनी उपलब्धि के रूप में लिखा है कि उसने बहुत से हिंदुओं को सुन्नी इस्लाम धर्म में दीक्षित किया और उन्हें [[जजिया कर]] व अन्य करों से मुक्ति प्रदान की, जिन्होंने इस्लाम स्वीकार किया उनका उसने भव्य स्वागत किया। इसके साथ ही, उसने सभी तीनों स्तरों पर करों व जजिया को बढ़ाकर अपने पूर्ववर्तियों के उस फैसले पर रोक लगा दिया जिन्होंने हिन्दू [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को जजिया कर से मुक्ति दी थी।<ref name=vsoxfordmbt/><ref>Annemarie Schimmel, Islam in the Indian Subcontinent, ISBN 978-9004061170, Brill Academic, pp 20-23</ref> उसने व्यापक स्तर पर अपने अमीरों व गुलामों की भर्ती की। फिरोज शाह के राज के यातना में कमी तथा समाज के कुछ वर्गों के साथ किए जा रहे पक्षपात के खत्म करने के रूप में देखा गया, परन्तु समाज के कुछ वर्गों के प्रति असहिष्णुता और उत्पीड़न में बढ़ोत्तरी भी हुई।<ref name=vsoxfordmbt/>
 
फिरोज शाह के मृत्यु ने अराजकता और विघटन को जन्म दिया। इस राज के दो अंतिम शासक थे, दोनों ने अपने सुल्तान घोषित किया और १३९४1394-१३९७1397 तक शासन किया। जिनमे से एक महमूद तुगलक था जो कि फिरोज शाह तुगलक का बड़ा पुत्र था, उसने दिल्ली से शासन किया। दूसरा नुसरत शाह था, जो कि फिरोज शाह तुगलक का ही रिश्तेदार था, ने [[फिरोजाबाद]] पर शासन किया।<ref name=vsoxford4>Vincent A Smith, {{Google books|p2gxAQAAMAAJ|The Oxford History of India: From the Earliest Times to the End of 1911|page=217}}, Chapter 2, '''pp 248-254''', Oxford University Press</ref> दोनों सम्बन्धियों के बीच युद्ध तब तक चलता रहा जब तक [[तैमूर लंग]] का १३९८1398 में भारत पर आक्रमण नहीं हुआ। तैमूर, जिसे पश्चिमी साहित्य में तैम्बुरलेन भी कहा जाता है, [[समरकंद]] का एक तुर्क सम्राट था। उसे दिल्ली में सुल्तानों के बीच चल रही जंग के बारे में जानकारी थी। इसलिए उसने एक सुनियोजित ढंग से दिल्ली की ओर कूच किया। उसके कूच के दौरान १ लाख से २ लाख के बीच हिन्दू मारे गए।<ref>{{cite encyclopedia | title=Tīmūr Lang | encyclopedia=[[Encyclopaedia of Islam]] | publisher=[[Brill]] | accessdate=24 अप्रैल 2014 | author=Beatrice F. Manz | editor=P. J. Bearman, Th. Bianquis, C. E. Bosworth, E. van Donzel and W. P. Heinrichs | year=2000 | volume=10 | edition=2}}</ref><ref>Elliot, Studies in Indian History, 2nd Edition, pp 98-101</ref><ref>Timur, [https://archive.org/stream/cu31924073036737#page/n449/mode/2up Malfuzat-i Timuri: Autobiography of Timur], Translated in 1871 by Eliott & Dawson in The History of India, Vol 3, Cornell University Archives, pp 435-447</ref> तैमूर का भारत पर शासन करने का उद्देश्य नहीं था। उसने दिल्ली को जमकर लूटा और पूरे शहर को में आग के हवाले कर दिया। पाँच दिनों तक, उसकी सेना ने भयंकर नरसंहार किया।<ref name=whunter/> इस दौरान उसने भारी मात्रा में सम्पति, गुलाम व औरतों को एकत्रित किया और समरकंद वापस लौट गया। पूरे दिल्ली सल्तनत में अराजकता और महामारी फैल गई।<ref name=vsoxford4/> सुल्तान महमूद तुगलक तैमूर के आक्रमण के समय गुजरात भाग गया। आक्रमण के बाद वह फिर से वापस आया तुगलक वंश का अंतिम शासक हुआ और कई गुटों के हाथों की कठपुतली बना रहा।<ref name=whunter/><ref name="aschi">Annemarie Schimmel, Islam in the Indian Subcontinent, ISBN 978-9004061170, Brill Academic, Chapter 2</ref>
 
=== सैयद वंश ===