"वैशाली जिला": अवतरणों में अंतर
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:''रुको एक क्षण पथिक, इस मिट्टी पर शीश नवाओ,
:''राज सिद्धियों की समाधि पर फूल चढ़ाते जाओ॥'' -- '''(कवि [[रामधारी सिंह दिनकर]] की पंक्तियाँ)'''
वैशाली का नामाकरण रामायण काल के एक राजा विशाल के नाम पर हुआ है। [[विष्णु पुराण]] में इस क्षेत्र पर राज करने वाले 34 राजाओं का उल्लेख है, जिसमें प्रथम ''नभग'' तथा अंतिम ''सुमति'' थे। राजा सुमति भगवान [[राम]] के पिता राजा [[दशरथ]] के समकालीन थे। विश्व को सर्वप्रथम [[गणतंत्र]] का ज्ञान कराने वाला स्थान वैशाली ही है। आज वैश्विक स्तर पर जिस लोकशाही को अपनाया जा रहा है वह यहाँ के लिच्छवी शासकों की ही देन है। ईसा पूर्व छठी सदी के उत्तरी और मध्य भारत में विकसित हुए 16 महाजनपदों में वैशाली का स्थान अति महत्त्वपूर्ण था। [[नेपाल]] की तराई से लेकर [[गंगा]] के बीच फैली भूमि पर वज्जियों तथा लिच्छवियों के संघ (अष्टकुल) द्वारा गणतांत्रिक शासन व्यवस्था की शुरूआत की गयी थी। लगभग छठी शताब्दि ईसा पूर्व में यहाँ का शासक जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चुना जाता था। [[मौर्य]] और [[गुप्त]] राजवंश में जब पाटलिपुत्र (आधुनिक [[पटना]]) राजधानी के रूप में विकसित हुआ, तब वैशाली इस क्षेत्र में होने वाले व्यापार और उद्योग का प्रमुख केंद्र था। ज्ञान प्राप्ति के पाँच वर्ष बाद भगवान [[बुद्ध]] का वैशाली आगमन हुआ, जिसमें वैशाली की प्रसिद्ध नगरवधू [[आम्रपाली]] सहित चौरासी हजार नागरिक [[संघ]] में शामिल हुए। वैशाली के समीप कोल्हुआ में [[भगवान बुद्ध]] ने अपना अंतिम सम्बोधन दिया था। इसकी याद में महान [[मौर्य]] महान सम्राट [[अशोक]] ने तीसरी शताब्दि ईसा पूर्व सिंह स्तम्भ का निर्माण करवाया था। महात्मा बुद्ध के महा परिनिर्वाण के लगभग 100 वर्ष बाद वैशाली में दूसरे बौद्ध परिषद का आयोजन किया गया था। इस आयोजन की याद में दो बौद्ध स्तूप बनवाये गये। वैशाली के समीप ही एक विशाल बौद्ध मठ है, जिसमें भगवान बुद्ध उपदेश दिया करते थे। भगवान बुद्ध के सबसे प्रिय शिष्य आनंद की पवित्र अस्थियाँ हाजीपुर (पुराना नाम- उच्चकला) के पास एक स्तूप में रखी गयी थी। पाँचवी तथा छठी सदी के दौरान प्रसिद्ध चीनी यात्री [[फाहियान]] तथा [[ह्वेनसांग]] ने वैशाली का भ्रमण कर यहाँ का भव्य वर्णन किया है।<br />
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== कृषि एवं उद्योग ==
== जनजीवन एवं संस्कृति ==
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