"अंगुत्तरनिकाय": अवतरणों में अंतर

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अंगुत्तरनिकाय में ११ 'निपात' (अध्याय) हैं जिनमें १ से लेकर ११ की संख्या के क्रम में भगवान बुद्ध के उपदेश संग्रहित किये गये हैं। प्रत्येक अंक की संख्या एक अध्याय या निपात है, जो 'अंक'-वार विषयों का प्रतिपादन करता है। प्रथम निपात का नाम 'एककनिपात' है जिसमें [[धम्म]] (धर्म) की व्याख्या 'एक' प्रकार से की गई। द्वितीय निपात का नाम 'दुकनिपात' है और उसमें धर्म की व्याख्या 'दो' दृष्टियों से की गयी है। इस तरह क्रमशः एकादसक-निपात तक ग्यारह-ग्यारह प्रकार से धर्म की व्याख्या की गई है। एकक-निपात से अंकों में वृद्धि होते हुए दुक-तिक-चतुक्क-पञ्चक-छक्क-सत्तक-अट्ठक-नव-दसक-एकादसक इस प्रकार क्रम से 'अंको की वृद्धि' (अंकोत्तर) चलती है। अतः ‘अंगुत्तरनिकाय’ (अंकोत्तरनिकाय) यह नाम पूर्णतः सार्थक तथा समुचित ही प्रतीत होता है। वस्तुतः अंगुत्तरनिकाय, [[एकोत्तर आगम]] की शैली में रचित ग्रन्थ है जिस शैली का अनेक सुत्तपिटकों में अनुसरण देखने को मिलता है।
 
अंगुत्तर निकाय में सोलह [[महाजनपद|महाजनपदों]] की सूची मिलती हैं।<ref>{{cite web |url= http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/ruh0002.htm|title= रुहेलखण्ड का संक्षिप्त इतिहास|access-date=१६ दिसंबर 2007|format= एचटीएम|publisher=टेक्नालॉजी डेवलेपमेंट फ़ॉर इंडियन लैंगुएजेज़|language=}}</ref>
 
==केसमुत्ति सुत्त==
अंगुत्तर निकाय के केसमुत्ति सुत्त में जिस प्रकार से वैज्ञानिक चेतना तथा बौद्धिकता को जागृत करने तथा अन्धविश्वासों तथा घिसी-पिटी बातों नकारने की बात की गई है, वह अपने आप में अत्यन्त महत्वपूर्ण है। वस्तुतः इस सुत्त के वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कारण ही बौद्ध साहित्य तथा बौद्ध-ज्ञान परम्परा प्रतिष्ठा को प्राप्त हुई
 
केसमुति सुत्त अधिक बड़ा नहीं है, किन्तु इसका अत्यन्त महत्त्व है। इसमें वर्णन आया है कि भगवान बुद्ध अपने विशाल भिक्खुसंघ सहित [[कोसल]] जनपद में चारिका करते हुए केस-मुत्त (केश-मुक्त) नामक कालामों के निगम में पहुँचे। कालाम लोग भगवान बुद्ध के सुयश को पहले से ही अच्छी तरह से जानते थे (''इतिपि सो भगवा अरहं सम्मासम्बुद्धो विज्जाचरणसम्पन्नो सुगतो लोकविदू अनुत्तरो पुरिसधम्मसारथी सत्था देवमनुस्सानं बुद्धो भगवाति'') । अतः वे भगवान बुद्ध के दर्शन करने के लिए उनके पास पहुँचे और अपनी जिज्ञासा प्रकट करते हुए पूछा कि
अंगुत्तर निकाय में सोलह [[महाजनपद|महाजनपदों]] की सूची मिलती हैं।<ref>{{cite web |url= http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/ruh0002.htm|title= रुहेलखण्ड का संक्षिप्त इतिहास|access-date=१६ दिसंबर 2007|format= एचटीएम|publisher=टेक्नालॉजी डेवलेपमेंट फ़ॉर इंडियन लैंगुएजेज़|language=}}</ref>
: ''हे भन्ते! वुछ श्रमण-ब्राह्मण केस-मुत्त निगम आते हैं। वे यहाँ अपने ही मत की प्रशंसा करते हैं तथा दूसरों के मत की निन्दा करते हैं और दूसरों के मत को नीचा दिखाते हैं। पुनः दूसरे श्रमण-ब्राह्मण यहाँ आकर अपने मत की प्रशंसा करके दूसरों के मतों की निन्दा करते हुए नहीं थकते। हे भन्ते! अपने मत की प्रशंसा तथा दूसरों के मत का दूषण करने से हमारे मन में उनके प्रति शंका पैदा होती है कि इन श्रमण-ब्राह्मणों में किसने सत्य कहा है तथा किसने झूठ?''
 
तब कालामों के शंका का समाधान करते हुए भगवान बुद्ध कहते हैं कि
: ''हे कालामो ! शक करना ठीक है। सन्देह करना ठीक है। वस्तुतः सन्देह करने के स्थान पर ही सन्देह उत्पन्न हुआ है। हे कालामों! किसी तथ्य को केवल इसलिए नहीं मानना चाहिए कि यह तो परम्परा से प्रचलित है, अथवा प्राचीन काल से ही ऐसा कहा जाता रहा है, अथवा यह धर्मग्रन्थों में कहा गया है, अथवा किसी वाद के निराकरण के लिए इस तथ्य का ग्रहण समुचित है। आकार या गुरुत्व के कारण ही किसी तथ्य को स्वीकार नहीं करना चाहिए, प्रत्युत इसलिए ग्रहण करना चाहिए कि ये धर्म (कुशल) हैं, अनिन्दनीय हैं तथा इसको ग्रहण करने पर इसका फल सुखद और हितप्रद ही होगा। ''
 
==संरचना==