"निधिवन": अवतरणों में अंतर

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स्वामी जी वृंदावन मे आने वाले सर्वप्रथम महापुरुष थे। स्वामी जी ने ही वृंदावन-श्री को स्थापित किया ।
बादशाह अकबर स्वामीजी के शिष्य तानसेन के साथ उनके दर्शनार्थ आया था(लगभग ई.1573)।
आधुनिक युग मे भी निधिवन मे ही पूर्ण जीवंतता है। जो न केवल आध्यात्मिकता की उच्चतम गहराई को संजोए हुए है,साथ ही आधुनिक प्रौद्योगिक मनुष्य तक को भगवदानुभूति से आप्लावित करती है।कुछ भक्तो का आग्रह है कि यहाँ रात्रि मे रास होता है। स्वामी जी की रसरीति मे बृज लीला का कोई स्थान नही है, उनके "जुगल किशोर"ही यहाँ के आराध्य है,जिनके सानिध्य का दिक्-काल से परे प्रतिक्षण एकरस आस्वादन मिलता है। इस स्वानुभूति के लिये स्वंय निधिवन की महिमा अक्षुण्ण है। बिवाह पंचमी (मार्गशीष शुक्ल पंचमी) के दिन बिहारी जी का प्रकटोत्वस मनाया जाता है, निधी वन से चाँदी के डोले में हरिदास जी की शोभा यात्रा में हजारों की संख्या में भक्त गण "जय जय कुंज बिहारी जय जय हरिदास" बधाई हो की हर्ष ध्वनी के साथ नाचते गाते भक्त गण बिहारी जी के मंदिर तक जाते हैं ।
अतः श्रीनिधिवनराज,वृंदावन-रस का सार-सर्वस्व है।