"हिन्दी साहित्य का इतिहास": अवतरणों में अंतर

→‎भक्तिकाल (1375 से 1700 ई.): काल निर्धारण
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→‎रीतिकाल (1700 से 1900 ई.): काल निर्धारण
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आज की दृष्टि से इस संपूर्ण भक्तिकाव्य का महत्व उसकी धार्मिकता से अधिक लोकजीवनगत मानवीय अनुभूतियों और भावों के कारण है। इसी विचार से भक्तिकाल को हिन्दी काव्य का स्वर्ण युग कहा जा सकता है।
 
=== रीतिकाल (16431700 से 18431900 ई.) ===
१७०० ई. के आस पास हिन्दी कविता में एक नया मोड़ आया। इसे विशेषत: तात्कालिक दरबारी संस्कृति और [[संस्कृत साहित्य|संस्कृतसाहित्य]] से उत्तेजना मिली। संस्कृत साहित्यशास्त्र के कतिपय अंशों ने उसे शास्त्रीय अनुशासन की ओर प्रवृत्त किया। हिन्दी में 'रीति' या 'काव्यरीति' शब्द का प्रयोग [[काव्यशास्त्र]] के लिए हुआ था। इसलिए काव्यशास्त्रबद्ध सामान्य सृजनप्रवृत्ति और [[रस]], [[अलंकार]] आदि के निरूपक बहुसंख्यक लक्षणग्रन्थों को ध्यान में रखते हुए इस समय के काव्य को ''''रीतिकाव्य'''' कहा गया। इस काव्य की शृंगारी प्रवृत्तियों की पुरानी परंपरा के स्पष्ट संकेत [[संस्कृत]], [[प्राकृत]], [[अपभ्रंश]], [[फारसी]] और [[हिन्दी]] के आदिकाव्य तथा कृष्णकाव्य की शृंगारी प्रवृत्तियों में मिलते हैं।