"सीता और गीता": अवतरणों में अंतर

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== कथानक ==
सीता और गीता दो जुड़वा बहनों (हेमा मालिनी अभिनीत दोहरी भूमिका) की कहानी है। फिल्म के आरंभ में ही शिरडी से लौटते हुए एक दंपति रास्ते में एक गरीब व्यक्ति से निवेदन करते हैं कि वे रात भर के लिए उन्हें आसरा दे दें क्योंकि उनकी पत्नी को बच्चा होने वाला है और वे रास्ते में फंस गए हैं। उसी गरीब व्यक्ति के घर डॉक्टर के आने से पहले ही बच्ची का जन्म हो जाता है। जब वह दंपति अपनी बच्ची को लेकर चलने लगते हैं और आसरा देने वाले उस व्यक्ति को कुछ रुपए देने लगते हैं तो वह व्यक्ति उन्हें प्रार्थना करने के लिए कहता है कि उनके घर भी संतान का जन्म हो। इस पर उस नन्हीं बच्ची के पिता कहते हैं कि यदि उन्हें जुड़वां संतान हुई होती तो वे एक बच्ची उन्हें जरूर दे देते। उनके जाने के बाद उस गरीब व्यक्ति की पत्नी उन्हें नन्हीं नवजात बच्ची दिखलाती है और तब उन्हें पता चलता है कि वस्तुतः उस दंपति को जुड़वां बच्ची ही पैदा हुई थी जिसमें से एक बच्ची को उसकी पत्नी ने छुपा ली है। इस प्रकार एक बच्ची उस गरीब बंजारे के घर पलती है और बड़ी होकर बंजारे का खेल दिखलाती है। उसका नाम है गीता। दूसरी ओर दूसरी बच्ची अपने माता-पिता के घर पलती है। फिल्म में उसके माता-पिता के दिवंगत हो जाने की सूचना उनके चित्र पर टंगी माला से दी जाती है और आरंभ से ही बड़ी हुई सीता नामक उस बच्ची पर उसकी चाची के जुल्मों सितम दिखलाये जाते हैं। उसके पिता अपने निधन से पूर्व अपने वकील मित्र गुप्ता जी को अपनी संपत्ति का ट्रस्टी बनाकर अपनी सारी जायदाद गीता के नाम करके जाते हैं, इस निर्देश के साथ कि जब तक सीता की शादी न हो जाए तब तक उस संपत्ति से अर्जित ₹5000 प्रतिमाह वकील गुप्ता जी सीता को देते रहेंगे। वकील साहब के आने पर सीता की चाची उसकी अच्छी तरह देखरेख करने का ढोंग करती है और उनके जाते ही रुपए झपट कर उस पर जुल्मों सितम जारी रखती है। इधर गीता अपने बंजारे टोले के एक बंजारे राका (धर्मेंद्र) और एक बालक टीना के साथ बंजारों का खेल दिखाकर रुपए कमाती है। वह रस्सी पर चलती है और विभिन्न तरह के करिश्मे दिखाती है। उसे न तो ठीक से बातें करने की तमीज है और न ही घर का कोई काम करने का ढंग। एक दिन उसकी मां उसे सब्जी लाने भेजती है और वह बच्चों के साथ कंचा खेलने लगती है। राका विनोद पूर्वक यह बात उसकी मां से बताता है और उसकी मां जाकर उसे झाड़ू से पीटती है, हालांकि वास्तव में वह उसे बहुत लाड़ प्यार करती रहती है। परंतु तात्कालिक पिटाई से बातों-बातों में ही गीता भाग जाती है।
 
उधर सीता पर एक ओर तो उसकी चाची जुल्म करती ही रहती है दूसरी ओर उसकी चाची का भाई रंजीत उस पर बुरी नजर रखता है और उसकी बात न मानने पर एक दिन सीता पर अपना पर्स चुराने का इल्जाम लगाकर उसे बेल्ट से बुरी तरह पीटता है। सीता की चाची उसकी शादी नहीं करना चाहती है क्योंकि उसकी शादी हो जाने पर ₹5000 प्रति महीने से उसे हाथ धोना पड़ेगा। फिर भी सीता के लिए इंग्लैंड से डॉक्टरी पढ़कर आए डॉक्टर रवि (संजीव कुमार) अपने साथ उसके विवाह का रिश्ता लेकर आते हैं, जिसके बारे में सीता के चाचा को पता है कि उन्हें एक सभ्य सुशील भारतीय लड़की ही अपनी पत्नी के रूप में पसंद है। सीता की चाची यह जानकर अपनी पुत्री शीला को तो एक सभ्य सुशील भारतीय लड़की की तरह साड़ी पहनाकर उनके सामने ले जाती है, जबकि सीता को जबरदस्ती धमकाकर अपनी बेटी वाला फैशनेबल पाश्चात्य ड्रेस पहनाकर डॉ० रवि और उसके माता पिता के सामने लाती है। इससे वे लोग रिश्ता नामंजूर कर चले जाते हैं। फिर चाची के अत्याचार से तंग आकर एक दिन सीता घर से भाग जाती है, जिसकी रिपोर्ट पुलिस थाने में लिखायी जाती है। उधर घर से भागी हुई गीता एक बच्चे को देखती है जो जुए में अपने स्कूल की फी के बीस रुपये हार कर रोता रहता है। गीता उस जुआरी को 20 रुपये लौटाने को कहती है और उसके न देने पर उसे जबरन पकड़कर पुलिस थाने ले जाती है। वहां इंस्पेक्टर गीता को देख कर उसे सीता के हुबहू हमशक्ल होने के कारण उसे ही सीता समझ कर सीता के चाचा बद्रीनाथ को फोन कर देते हैं और वे लोग वहां आकर गीता को पकड़ कर जैसे-तैसे घर ले जाने लगते हैं। लेकिन गीता बीच रास्ते ही एक पेड़ की डाल पकड़कर लटक जाती है और फिर कूदकर भाग निकलती है और पीछा करते हुए उन लोगों से बचने के लिए रास्ते में खरी डॉक्टर रवि की गाड़ी में छुप जाती है। जब डॉक्टर रवि भी उसे देखते हैं तो वे भी उसे सीता ही मानते हैं और अपने घर ले जाकर उसे जैसे-तैसे समझाकर साड़ी पहना कर अपने माता पिता के सामने आने को कहते हैं। गीता कुछ तो अनजानवश और कुछ कौतुकवश उसकी बात मान कर यथासंभव वैसा करती है। एक दिन रवि के साथ स्केटिंग करते हुए और गीत गाते हुए दोनों दूर निकल जाते हैं। गीता स्केट को न रोक पाने के कारण जैसे-तैसे एक्सीडेंटों से बचते हुए पुलिस द्वारा पकड़ कर अपने घर (सीता के घर) पहुंचा दी जाती है। वहां सीता की दादी को असहाय और लाचार देखकर तथा वहां होने वाले जुल्म को समझ कर वह निर्णय करती है कि इस जुर्म को समाप्त किए बिना वह वहां से नहीं जाएगी। इसके बाद वह सीता की क्रूर चाची और उसकी बेटी की अच्छी खबर लेती है और उनसे सीता पर ढाए गए जुल्मों का बदला अच्छी तरह लेती है। एक दिन रंजीत की भी खूब धुनाई करती है।
 
== चरित्र ==