"वाल्मीकि": अवतरणों में अंतर

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महर्षि वाल्मीकि को " श्रीबराम" के जीवन में घटित प्रत्येक घटनाओं का पूर्णरूपेण ज्ञान था।
 
आदिकवि वाल्मीकि के जन्म होने का कहीं भी कोई विशेष प्रमाण नहीं मिलता है।== सतयुग, त्रेता और द्वापर तीनों कालों में वाल्मीकि का उल्लेख मिलता है वो भी वाल्मीकि नाम से ही। रामचरित्र मानस के अनुसार जब राम वाल्मीकि आश्रम आए थे तो वो आदिकवि वाल्मीकि के चरणों में दण्डवत प्रणाम करने के लिए जमीन पर डंडे की भांति लेट गए थे और उनके मुख से निकला था "तुम त्रिकालदर्शी मुनिनाथा, विश्व बिद्र जिमि तुमरे हाथा।" अर्थात आप तीनों लोकों को जानने वाले स्वयं प्रभु हो। ये संसार आपके हाथ में एक बेर के समान प्रतीत होता है।<ref>{{cite book |title=सहरिया |date=2009 |publisher=वन्या [for] आदिम जाति कल्याण विभाग |url=https://books.google.co.in/books?id=M1xQAQAAMAAJ&q=%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%BF+%E0%A4%AD%E0%A5%80%E0%A4%B2+%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BF+%E0%A4%95%E0%A5%87&dq=%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%BF+%E0%A4%AD%E0%A5%80%E0%A4%B2+%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BF+%E0%A4%95%E0%A5%87&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwiQtqrjwbfcAhXMK48KHby6D3EQ6AEIOzAD |accessdate=24 जुलाई 2018 |language=hi}}</ref>
== जीवन परिचय ==
आदिकवि वाल्मीकि के जन्म होने का कहीं भी कोई विशेष प्रमाण नहीं मिलता है। सतयुग, त्रेता और द्वापर तीनों कालों में वाल्मीकि का उल्लेख मिलता है वो भी वाल्मीकि नाम से ही। रामचरित्र मानस के अनुसार जब राम वाल्मीकि आश्रम आए थे तो वो आदिकवि वाल्मीकि के चरणों में दण्डवत प्रणाम करने के लिए जमीन पर डंडे की भांति लेट गए थे और उनके मुख से निकला था "तुम त्रिकालदर्शी मुनिनाथा, विश्व बिद्र जिमि तुमरे हाथा।" अर्थात आप तीनों लोकों को जानने वाले स्वयं प्रभु हो। ये संसार आपके हाथ में एक बेर के समान प्रतीत होता है।<ref>{{cite book |title=सहरिया |date=2009 |publisher=वन्या [for] आदिम जाति कल्याण विभाग |url=https://books.google.co.in/books?id=M1xQAQAAMAAJ&q=%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%BF+%E0%A4%AD%E0%A5%80%E0%A4%B2+%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BF+%E0%A4%95%E0%A5%87&dq=%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%BF+%E0%A4%AD%E0%A5%80%E0%A4%B2+%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BF+%E0%A4%95%E0%A5%87&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwiQtqrjwbfcAhXMK48KHby6D3EQ6AEIOzAD |accessdate=24 जुलाई 2018 |language=hi}}</ref>
 
महाभारत काल में भी वाल्मीकि का वर्णन मिलता है जब पांडव कौरवों से युद्ध जीत जाते हैं तो [[द्रौपदी]] यज्ञ रखती है,जिसके सफल होने के लिये शंख का बजना जरूरी था और कृष्ण सहित सभी द्वारा प्रयास करने पर भी पर यज्ञ सफल नहीं होता तो [[कृष्ण]] के कहने पर सभी वाल्मीकि से प्रार्थना करते हैं। जब वाल्मीकि वहां प्रकट होते हैं तो शंख खुद बज उठता है और द्रौपदी का यज्ञ सम्पूर्ण हो जाता है। इस घटना को [[कबीर]] ने भी स्पष्ट किया है "सुपच रूप धार सतगुरु आए। पांडों के यज्ञ में शंख बजाए।"{{cn}}