"हिंदी की विभिन्न बोलियाँ और उनका साहित्य": अवतरणों में अंतर

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[[हिन्दी]] की अनेक '''बोलियाँ''' ([[उपभाषा]]एँ) हैं, जिनमें [[अवधी]], [[ब्रजभाषा]], [[कन्नौजी]], [[बुंदेली]], [[बघेली]], [[भोजपुरी]], [[हरयाणवी]], [[राजस्थानी]], [[छत्तीसगढ़ी]], [[मालवी]], [[नागपुरी भाषा|नागपुरी]], [[खोरठा भाषा|खोरठा]], [[पंचपरगनिया भाषा|पंचपरगनिया]], [[कुमाउँनी]], [[मगही]] आदि प्रमुख हैं। इनमें से कुछ में अत्यंत उच्च श्रेणी के [[साहित्य]] की रचना हुई है। ऐसी बोलियों में [[ब्रजभाषा]] और [[अवधी]] प्रमुख हैं। यह बोलियाँ हिन्दी की विविधता हैं और उसकी शक्ति भी। वे हिन्दी की जड़ों को गहरा बनाती हैं। हिन्दी की बोलियाँ और उन बोलियों की उपबोलियाँ हैं जो न केवल अपने में एक बड़ी परंपरा, [[इतिहास]], [[सभ्यता]] को समेटे हुए हैं वरन स्वतंत्रता संग्राम, जनसंघर्ष, वर्तमान के बाजारवाद के खिलाफ भी उसका रचना संसार सचेत है।<ref>{{cite web |url= http://hindi.webduniya.com/miscellaneous/special07/hindiday/0709/13/1070913069_1.htm|title= अपने घर में कब तक बेगानी रहेगी हिन्दी|access-date=[[9 जून]] [[2008]]|format= एचटीएम|publisher= वेब दुनिया|language=}}</ref>
 
मोटे तौर पर हिंद ([[भारत]]) की किसी [[भाषा]] को 'हिंदी' कहा जा सकता है। अंग्रेजी शासन के पूर्व इसका प्रयोग इसी अर्थ में किया जाता था। पर वर्तमानकाल में सामान्यतः इसका व्यवहार उस विस्तृत भूखंड की भाषा के लिए होता है जो पश्चिम में [[जैसलमेर]], उत्तर पश्चिम में [[अंबाला]], उत्तर में [[शिमला]] से लेकर [[नेपाल]] की [[तराई]], पूर्व में [[भागलपुर]], दक्षिण पूर्व में [[रायपुर]] तथा दक्षिण-पश्चिम में [[खंडवा]] तक फैली हुई है। हिंदी के मुख्य दो भेद हैं - [[पश्चिमी हिंदी]] तथा [[पूर्वी हिंदी]]।