"लालबहादुर शास्त्री": अवतरणों में अंतर

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दूसरे विश्व युद्ध में [[इंग्लैण्ड]] को बुरी तरह उलझता देख जैसे ही नेताजी ने [[आजाद हिन्द फौज]] को "दिल्ली चलो" का नारा दिया, [[गान्धी]] जी ने मौके की नजाकत को भाँपते हुए 8 अगस्त 1942 की रात में ही [[बम्बई]] से अँग्रेजों को "भारत छोड़ो" व भारतीयों को "करो या मरो" का आदेश जारी किया और सरकारी सुरक्षा में यरवदा [[पुणे]] स्थित [[आगा खान पैलेस]] में चले गये। 9 अगस्त 1942 के दिन शास्त्रीजी ने [[इलाहाबाद]] पहुँचकर इस आन्दोलन के गान्धीवादी नारे को चतुराई पूर्वक '''"मरो नहीं, मारो!"''' में बदल दिया और अप्रत्याशित रूप से क्रान्ति की [[दावानल]] को पूरे देश में प्रचण्ड रूप दे दिया। पूरे ग्यारह दिन तक भूमिगत रहते हुए यह आन्दोलन चलाने के बाद 19 अगस्त 1942 को शास्त्रीजी गिरफ्तार हो गये।
शास्त्रीजी के राजनीतिक दिग्दर्शकों में [[पुरुषोत्तमदास टंडन]] और पण्डित [[गोविंद बल्लभ पंत]] के अतिरिक्त [[जवाहरलाल नेहरू]] भी शामिल थे। सबसे पहले [[1929]] में [[इलाहाबादप्रयागराज]] आने के बाद उन्होंने टण्डनजी के साथ भारत सेवक संघ की [[इलाहाबादप्रयागराज]] इकाई के सचिव के रूप में काम करना शुरू किया। इलाहाबाद में रहते हुए ही नेहरूजी के साथ उनकी निकटता बढी। इसके बाद तो शास्त्रीजी का कद निरन्तर बढता ही चला गया और एक के बाद एक सफलता की सीढियाँ चढते हुए वे नेहरूजी के मंत्रिमण्डल में गृहमन्त्री के प्रमुख पद तक जा पहुँचे। और इतना ही नहीं, नेहरू के निधन के पश्चात [[भारतवर्ष]] के प्रधान मन्त्री भी बने।
 
== प्रधान मन्त्री ==