"व्यपगत का सिद्धान्त": अवतरणों में अंतर

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[[लॉर्ड डलहौज़ी]] ने उपाधियों तथा पेंशनों पर प्रहार करते हुए 1853 ई. में [[कर्नाटक]] के नवाब की पेंशन बंद करवा दी। 1855 ई. में [[तंजौर]] के राजा की मृत्यु होने पर उसकी उपाधि छीन ली। डलहौज़ी [[मुग़ल]] सम्राट की भी उपाधि छीनना चाहता था, परन्तु सफल नहीं हो सका। उसने [[पेशवा]] [[पेशवा बाजीराव द्वितीय|बाजीराव द्वितीय]] की 1853 ई. में मृत्यु होने पर उसके दत्तक पुत्र [[नाना साहब]] को पेंशन देने से मना कर दिया। उसका कहना था कि पेंशन पेशवा को नहीं, बल्कि बाजीराव द्वितीय को व्यक्तिगत रूप से दी गयी थी। [[हैदराबाद]] के [[निज़ाम]] का कर्ज़ अदा करने में अपने को असमर्थ पाकर 1853 ई. में [[बरार]] का अंग्रेज़ी राज्य में विलय कर लिया गया। 1856 ई. में अवध पर कुशासन का आरोप लगाकर [[लखनऊ]] के रेजीडेन्ट आउट्रम ने [[अवध]] का विलय अंग्रेज़ी साम्राज्य में करवा दिया, उस समय अवध का नवाब 'वाजिद अली शाह' था।
 
सन 1849 में लार्ड डलहोजी की घोषणा के अनुसार [[बहादुर शाह ज़फ़र]] के उत्तराधिकारी को ऐतिहासिक [[लाल किला]] छोड़ना पडेगा और शहर के बाहर जाना होगा और सन 1856 में लार्ड कैन्निग की घोषणा कि [[बहादुर शाह ज़फ़र]] के उत्तराधिकारी राजा नहीं कहलायेंगे ने [[मुगल|मुगलों]] को कंपनी के विद्रोह में खडा कर दिया।<ref>[http://books.google.co.in/books?id=t-WqXkeAH0gC&pg=PA82&lpg=PA82&dq=%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4+%E0%A4%95%E0%A4%BE+%E0%A4%87%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8+%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%AF+%E0%A4%95%E0%A4%BE+%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4&source=bl&ots=6JJheOsV8O&sig=xLj0Jh-YpR-Z8jEF7ggkxvjn5Ak&hl=hi&sa=X&ei=c0MsU9emPI6WrAeQjYHIAg&ved=0CDsQ6AEwBA#v=onepage&q=%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%87%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%AF%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4&f=false गूगल बूक: आधुनिक भारत का इतिहास]</ref>