"गुरु-शिष्य परम्परा": अवतरणों में अंतर

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[[श्रेणी:भारतीय संस्कृति]]
[[श्रेणी:गुरुहिन्दू शिष्यव्यवहार परम्पराऔर अनुभव]]
 
हमारे वैदिक भारत की यही परम्परा रही है कि स्वयं उस ज्ञान का अनुभव करके उसे अपनी चेतना में जाग्रत करके उस ज्ञान को बनाये रखने के लिए उसे इस तरह वैदिक वैज्ञानिक पद्धति द्वारा उन ऋचाओं में ऐसे उन श्रुतियों को एक क्रम से एक के बाद एक आगे बढ़ता रहता मानो जैसे नदी की धारा अपने आप रास्ता बना कर आगे बढ़ती और अगर रास्ते में कोई बाधा आती तो उसे कैसे अपने आप हटा देती ऐसे ही गया है कि वह अपने आप ही आगे बढ़ते रहता है ऐसे ही हम भारतीयों की वह गुरु शिष्य की परम्परा है जो सनातन से चली आ रही है ।