"गंगा सिंह": अवतरणों में अंतर

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'''जनरल सर गंगासिंह'''(3 अक्टूबर 1880, [[बीकानेर]] – 2 फरवरी 1943, [[मुम्बई]]) १८८८ से १९४३ तक [[बीकानेर]] रियासत के महाराजा थे। उन्हें आधुनिक सुधारवादी भविष्यद्रष्टा के रूप में याद किया जाता है। [[प्रथम विश्वयुद्ध|पहले महायुद्ध]] के दौरान ‘ब्रिटिश इम्पीरियल वार केबिनेट’ के अकेले गैर-अँगरेज़ सदस्य थे।
 
==जन्म==
३ अक्तूबर १८८० को बीकानेर के महाराजा लालसिंह की तीसरी संतान के रूप में जन्मे [http://www.bikanerpride.in/hh-ganga-shingh-bahadur-history-html/ गंगासिंह], डूंगर सिंह के छोटे भाई थे, जो बड़े भाई के देहांत के बाद १८८७ ईस्वी में १६ दिसम्बर को बीकानेर-नरेश बने।
 
==शिक्षा==
उनकी प्रारंभिक शिक्षा पहले घर ही में, फिर बाद में [[अजमेर]] के [[मेयो कॉलेज]] में १८८९ से १८९४ के बीच हुई। ठाकुर लालसिंह के मार्गदर्शन में १८९५ से १८९८ के बीच इन्हें प्रशासनिक प्रशिक्षण मिला। १८९८ में गंगा सिंह फ़ौजी-प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए [[देवली]] रेजिमेंट भेजे गए जो तब ले.कर्नल बैल के अधीन देश की सर्वोत्तम मिलिट्री प्रशिक्षण रेजिमेंट मानी जाती थी।
 
==विवाह और परिवार ==
इनका पहला विवाह [[प्रतापगढ़]] राज्य की बेटी वल्लभ कुंवर से १८९७ में, और दूसरा विवाह [[बीकमकोर]] की राजकन्या भटियानी जी से हुआ जिनसे इनके दो पुत्रियाँ और चार पुत्र हुए|
 
==कार्यक्षेत्र==
पहले [[विश्वयुद्ध]] में एक फ़ौजी अफसर के बतौर गंगासिंह ने अंग्रेजों की तरफ से ‘बीकानेर कैमल कार्प्स’ के प्रधान के रूप में [[फिलिस्तीन]], [[मिश्र]] और [[फ़्रांस]] के युद्धों में सक्रिय हिस्सा लिया। १९०२ में ये [[प्रिंस ऑफ़ वेल्स]] के और १९१० में [[किंग जॉर्ज पंचम]] के [[ए डी सी]] भी रहे।
 
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१९२० से १९२६ के बीच गंगा सिंह ‘इन्डियन चेंबर ऑफ़ प्रिन्सेज़’ के चांसलर बनाये गए। इस बीच १९२४ में ‘लीग ऑफ़ नेशंस’ के पांचवें अधिवेशन में भी इन्होंने भारतीय प्रतिनिधि की हैसियत से हिस्सा लिया।
 
<ref>{{Cite web|url=http://hihindi.com/ganga-singh-biography-in-hindi/|title=महाराजा गंगा सिंह की जीवनी {{!}} Ganga Singh Biography In Hindi|last=|first=|date=|website=|archive-url=|archive-date=|dead-url=|access-date=}}</ref> वर्साय के शान्ति समझौते में बीकानेर के इस शासक को बुलाया गया था. इन्होने देशी राज्यों के मुखिया के रूप में सम्मेलन में हिस्सा लिया. वर्ष 1921 में नरेंद्रमंडल का गठन इन्ही की बदौलत किया गया, बाद में गंगासिंह को इसका अध्यक्ष चुना गया था. गंगा सिंह देशी राज्यों के हितों के पक्षधर तथा अंग्रेजों के चाटुकार थे. इन्होने अपने जीवन काल में एक जनहित का कार्य किया वो था. गंगनहर का लाना, जिसके कारण इन्हें कलयुग का भागीरथ भी कहते हैं.
==मानद-सदस्यताएं==
 
==मानद-सदस्यताएं==
ये ‘[[श्री भारत-धर्म महामंडल]]’ और [[बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय]] के संरक्षक, ‘रॉयल कोलोनियल इंस्टीट्यूट’ और ‘ईस्ट इण्डिया एसोसियेशन’ के उपाध्यक्ष, ‘इन्डियन आर्मी टेम्परेन्स एसोसियेशन’ ‘[[बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी]]’ लन्दन की ‘[[इन्डियन सोसाइटी]]’ ‘[[इन्डियन जिमखाना]]’ [[मेयो कॉलेज]], अजमेर की जनरल कांसिल, ‘[[इन्डियन सोसाइटी ऑफ ओरिएंटल आर्ट]]’ जैसी संस्थाओं के सदस्य और, ‘[[इन्डियन रेड-क्रॉस]] के पहले सदस्य थे|
 
==प्रमुख प्रशासनिक योगदान==
उन्होंने १८९९-१९०० के बीच पड़े कुख्यात ‘छप्पनिया काल’ की ह्रदय-विदारक विभीषिका देखी थी, और अपनी रियासत के लिए पानी का इंतजाम एक स्थाई समाधान के रूप में करने का संकल्प लिया था और इसीलिये सबसे क्रांतिकारी और दूरदृष्टिवान काम, जो इनके द्वारा अपने राज्य के लिए किया गया वह था- [[पंजाब]] की [[सतलज]] नदी का पानी ‘[[गंग-केनाल]]’ के ज़रिये बीकानेर जैसे सूखे प्रदेश तक लाना और नहरी सिंचित-क्षेत्र में किसानों को खेती करने और बसने के लिए मुफ्त ज़मीनें देना|
 
[[श्रीगंगानगर]] शहर के विकास को भी उन्होंने प्राथमिकता दी वहां कई निर्माण करवाए और बीकानेर में अपने निवास के लिए पिता लालसिंह के नाम से ‘लालगढ़ पैलेस’ बनवाया| बीकानेर को जोधपुर शहर से जोड़ते हुए रेलवे के विकास और बिजली लाने की दिशा में भी ये बहुत सक्रिय रहे। जेल और भूमि-सुधारों की दिशा में इन्होंने नए कायदे कानून लागू करवाए, नगरपालिकाओं के स्वायत्त शासन सम्बन्धी चुनावों की प्रक्रिया शुरू की, और राजसी सलाह-मशविरे के लिए एक मंत्रिमंडल का गठन भी किया। १९३३ में लोक देवता रामदेवजी की समाधि पर एक पक्के मंदिर के निर्माण का श्रेय भी इन्हें है!
 
==सम्मान==
सन १८८० से १९४३ तक इन्हें १४ से भी ज्यादा कई महत्वपूर्ण सैन्य-सम्मानों के अलावा सन १९०० में ‘केसरेहिंद’ की उपाधि से विभूषित किया गया। १९१८ में इन्हें पहली बार 19 तोपों की सलामी दी गयी, वहीं १९२१ में दो साल बाद इन्हें अंग्रेज़ी शासन द्वारा स्थाई तौर 19 तोपों की सलामी योग्य शासक माना गया।
 
==निधन==
२ फरवरी १९४३ को बंबई में ६२ साल की उम्र में आधुनिक बीकानेर के निर्माता जनरल गंगासिंह का निधन हुआ।
 
==आलोचना==
इन सब चीज़ों के बावजूद कुछ लोग उन्हें एक निहायत अलोकतांत्रिक, घोर सुधार-विरोधी, शिक्षा-आंदोलनों को कुचलने वाले, अप्रतिम जातिवादी, जनता पर तरह-तरह के ढेरों टेक्स लगाने वाले अंगरेज़ परस्त और [[बीकानेर]] राज्य से [[आर्य समाज]] और [[प्रजा परिषद्]] के सदस्यों को देश निकाला देने वाले, गुस्सैल शासक गंगासिंह के रूप में भी याद करते हैं। जनरल गंगासिंह के पक्ष में जितनी बातें स्थानीय इतिहास में लिखी मिलती हैं- उतनी ही उनके विपक्ष में भी| बीकानेर में स्वाधीनता-सेनानियों, [[कांग्रेस]] से जुड़े पुराने नेताओं और [[प्रजामंडल]] जैसे आन्दोलनों को कुचलने वाले इस असाधारण राजा के बारे में खुली निंदा से भरे इतिहास के पृष्ठ भी लिखे गए हैं! उनके व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी कुछ लोमहर्षक कहानियां आज भी बीकानेर के पुराने लोगों को याद हैं।{{cn}} ये बात निर्विवाद है कि उन जैसा विवादास्पद राजा बीकानेर में आज तक नहीं हुआ।{{cn}}
 
= संदर्भ =
[[http://www.bikanerpride.in/hh-ganga-shingh-bahadur-history-html/| कलयुग के भागीरथ ‘ थे महाराजा गंगा सिंह!]]==सन्दर्भ==
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गंगा रिसाल