"भिखारीदास": अवतरणों में अंतर
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;काव्यांगों का निरूपण
काव्यांगों के निरूपण में भिखारी दास को सर्वप्रधान स्थान दिया जाता है क्योंकि इन्होंने छंद, रस, [[अलंकार]], रीति, गुण, दोष शब्दशक्ति आदि सब विषयों का औरों से विस्तृत प्रतिपादन किया है। इनकी विषय प्रतिपादन शैली उत्तम है और आलोचनशक्ति भी इनमें कुछ पाई जाती है; जैसे [[हिन्दी]] काव्यक्षेत्र में इन्हें परकीया के प्रेम की प्रचुरता दिखाई पड़ी, जो रस की दृष्टि से रसाभास के अंतर्गत आता है। बहुत से स्थलों पर तो [[राधा]][[कृष्ण]] का नाम आने से देवकाव्य का आरोप हो जाता है और दोष का कुछ परिहार हो जाता है, पर सर्वत्र ऐसा नहीं होता। इससे भिखारी दास ने स्वकीया का लक्षण ही कुछ अधिक व्यापक करना चाहा और कहा,
: ''श्रीमाननि के भौन में भोग्य भामिनी : ''श्रीमाननि के भौन में भोग्य भामिनी और।
: ''तिनहूँ को सुकियाह में गनैं सुकवि सिरमौर
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