"सत्याग्रह": अवतरणों में अंतर

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अन्यायी और अन्याय के प्रति प्रतिकार का प्रश्न सनातन है। अपनी [[सभ्यता]] के विकासक्रम में मनुष्य ने प्रतिकार के लिए प्रमुखत: चार पद्धतियों का अवलंबन किया है-
 
(1) पहली पद्धति है बुराई के बदले अधिक बुराई। इस पद्धति से दंडनीति का जन्म हुआ जब इससे समाज और राष्ट्र की समस्याओं के निराकरण का प्रयास हुआ तो युद्ध की संस्था का विकास हुआ।
 
(2) दूसरी पद्धति है, बुराई के बदले समान बुराई अर्थात् अपराध का उचित दंड दिया जाए, अधि नहीं। यह अमर्यादित प्रतिकार को सीमित करने का प्रयास है।
 
(3) तीसरी पद्धति है, बुराई के बदले भलाई। यह बुद्ध, ईसा, गांधी आदि संतों का मार्ग है। इसमें हिंसा के बदले अहिंसा का तत्व अंतर्निहित है।
 
(4) चौथी पद्धति है बुराई की उपेक्षा।
 
[[विनोबा भावे|अचार्य विनोबा]] कहते हैं- "बुराई का प्रतिकार मत करो बल्कि विरोधी की समुचित चिंतन में सहायता करो। उसके सद्विचार में सहकार करो। शुद्ध विचार करने, सोचने समझने, व्यक्तिगत जीवन में उसका अमल करने और दूसरों को समझाने में ही हमारे लक्ष्य की पूर्ति होनी चाहिए। सामनेवाले के सम्यक् चिंतन में मदद देना ही सत्याग्रह का सही स्वरूप है।' इसे ही विनोबा सत्याग्रह को सौम्यतर और सौम्यतम प्रक्रिया कहते हैं। सत्याग्रह प्रेम की प्रक्रिया है। उसे क्रम-क्रम, अधिकाधिक निखरते जाना चाहिए।
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सत्याग्रह का रूप अंतरराष्ट्रीय संघर्ष में कैसा होगा, इसके विषय में आचार्य विनोबा कहते हैं-मान लीजिए, आक्रमणकारी हमारे गाँव में घुस जाता है, तो मैं कहूँगा कि तुम प्रेम से आओ-उनसे मिलने हम जाएँगे, डरेंगे नहीं। परंतु वे कोई गलत काम कराना चाहते है तो हम उनसे कहेंगे, हम यह बात मान नहीं सकते हैं-चाहे तुम हमें समाप्त कर दो। सत्याग्रह के इस रूप का प्रयोग अभी अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के लिए नहीं हुआ है। परंतु यदि अणुयुग की विभीषिका से मानव संस्कृति की रक्षा के लिए, हिंसा की शाक्ति को अपदस्थ करके अहिंसा की शक्ति को प्रतिष्ठित होना है, तो सत्याग्रह के इस मार्ग के अतिरिक्त प्रतिकार का दूसरा मार्ग नहीं है। इस अणुयुग में शस्त्र का प्रतिकार शस्त्र से नहीं हो सकता। मगर आज का
युग कहा से कहा पहुच गया है वो ये सब पर बिलकुल भी भरोषा नहीं कार्य है । अमेरिका में एस्सा कहा जाता है की "अगर तुम्हे कोई एक थप्पड़ मरे तो उससे सूली पे चढ़ा दो " भला ये भी कोई बात है ये तो सारा सर हिंशा को बढ़ावा है और हमारे गाधीजी कहा करते थे की "अगर कोई एक थप्पड़ मरे तो दूसरा गाल दे दो वे खुद सरमा जाये गा" this is written by Binayak Datta Pramanik.
 
== इन्हें भी देखें ==
* [[महाड़ सत्याग्रह]]