"बृहद्देवता": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
No edit summary टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
No edit summary टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
||
पंक्ति 1:
{{आधार}}▼
'''बृहद्देवता''' [[संस्कृत]] में [[छंदशास्त्र]] का एक प्राचीन ग्रंथ है। इसके रचयिता [[शौनक]] माने जाते हैं।
अनुमान है कि ईसा के पूर्व आठवीं शताब्दी में अर्थात् पाणिनी के पूर्व तथा यास्क के बाद इसकी रचना हुई है। मैकडोनल के मतानुसार ये शौनेक पुराणोक्त शौनक से भिन्न है। वैदिक देवताओं के नाम कैसे रखे गये, इसका विचार इसमें हुआ है। अध्याय एवं श्लोकः---------- इसमें 1200 श्लोक और 8 अध्याय हैं। प्रथम तथा द्वितीय अध्याय में ग्रन्थ की भूमिका है। उसमें प्रत्येक देवता का स्वरूप, स्थान तथा वैलक्षण्य का वर्णन है। भूमिका के अन्त में निपात, अव्यय, सर्वनाम, संज्ञा, समास आदि व्याकरण के विषयों की चर्चा है। यास्क के व्याकरण दृष्टि से अपप्रयोगों पर भी टीकाहै।
देव उल्लेख:---'
Line 8 ⟶ 7:
@ भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 542 |
▲{{आधार}}
[[श्रेणी:वेद]]
|