"सूर्य ग्रहण": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: सन्दर्भ भाषा पाठ सुधारा
No edit summary
टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 59:
सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्र ग्रहण में तीन प्रहर पूर्व भोजन नहीं करना चाहिये। बूढे बालक और रोगी एक प्रहर पूर्व तक खा सकते हैं ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चंद्र, जिसका ग्रहण हो, ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोडना चाहिए। बाल तथा वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिये व दंत धावन नहीं करना चाहिये ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल मूत्र का त्याग करना, मैथुन करना और भोजन करना - ये सब कार्य वर्जित हैं। ग्रहण के समय मन से सत्पात्र को उद्देश्य करके जल में जल डाल देना चाहिए। ऐसा करने से देनेवाले को उसका फल प्राप्त होता है और लेने वाले को उसका दोष भी नहीं लगता। ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरुरतमंदों को वस्त्र दान से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है। 'देवी भागवत' में आता है कि भूकंप एवं ग्रहण के अवसर पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिये।<ref>{{cite web |url=http://www.hariomgroup.org/hariombooks/misc/Hindi/grahan-vidhi-nishedh.html |title=ग्रहण विधि निषेध |accessmonthday= |accessyear= |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=ज्योतिष की सार्थकता | language = hi}}</ref>
 
== सन्दर्भ. -- सूर्य ग्रहण में चन्द्रमा की कोई भूमिका नहीं होती। सूर्य ग्रहण एक अदभुत खगोलीय घटना है, राहू ग्रह गैसीय पिण्ड होने के कारण सूर्य की कक्षा में प्रवेश कर जाता है, तभी सूर्य ग्रहण की घटना घटित होती है। दक्षिणायन सूर्य अनुलोम गति में दक्षिण की ओर लगातार छः महीने चलता है। और फिर लगभग 23 दिसम्बर से 5 जनवरी तक स्थिर अवस्था में आकर, 6 जनवरी से विलोम गति प्राप्त करता हुआ, लगभग 7 जनवरी से उत्तर की ओर चलने का प्रयास करने लगता है। तथा 13 जनवरी से पूर्ण गति पा कर, सूर्य उत्तरायण हो जाता है। - ==
== सन्दर्भ ==
== श्रीश्याम उपासक- ==
{{reflist}}
== ओमप्रकाश जिन्दल की कलम से ==
<br />{{reflist}}
{{Authority control}}