"कश्मीर": अवतरणों में अंतर

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=== पं॰ नेहरू की भयंकर भूलें ===
जब षड्यंत्रों से बात नहीं बनी तो पाकिस्तान ने बल प्रयोग द्वारा कश्मीर को हथियाने की कोशिश की तथा २२ अक्टूबर १९४७ को सेना के साथ कबाइलियों ने मुजफ्फराबाद की ओर कूच किया। लेकिन कश्मीर के नए प्रधानमंत्री मेहरचन्द्र महाजन के बार-बार सहायता के अनुरोध पर भी भारत सरकार उदासीन रही। भारत सरकार के गुप्तचर विभाग ने भी इस सन्दर्भ में कोई पूर्व जानकारी नहीं दी। प्रधानमंत्री मेहरचंद्र महाजन के कपटपूर्ण आचरण से ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह संतुष्ट नहीं हुए । उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री की सम्मति के बिना पकिस्तान के खिलाफ युद्ध करने के लिए २५०० जवान भेज दिए। बिना वर्दी के २५० जवानों ने कश्मीर के विशिष्ट क्षेत्र पर कव्जा कर लिया जो आजाद कश्मीर के नाम से जाना जाता है। आजाद कश्मीर आज भारत के कब्जे में है। कश्मीर के ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह ने बिना वर्दी के २५० जवानों के साथ पाकिस्तान की सेना को रोकने की कोशिश की तथा वे सभी वीरगति को प्राप्त हुए।हुए आखिर २४ अक्टूबर को माउन्टबेटन ने "सुरक्षा कमेटी" की बैठक की। परन्तु बैठक में महाराजा को किसी भी प्रकार की सहायता देने का निर्णय नहीं किया गया। २६ अक्टूबर को पुन: कमेटी की बैठक हुई। अध्यक्ष माउन्टबेटन अब भी महाराजा के हस्ताक्षर सहित विलय प्राप्त न होने तक किसी सहायता के पक्ष में नहीं थे। आखिरकार २६ अक्टूबर को सरदार पटेल ने अपने सचिव वी.पी. मेनन को महाराजा के हस्ताक्षर युक्त विलय दस्तावेज लाने को कहा। सरदार पटेल स्वयं वापसी में वी.पी. मेनन से मिलने हवाई अड्डे पहुंचे। विलय पत्र मिलने के बाद २७ अक्टूबर को हवाई जहाज द्वारा श्रीनगर में भारतीय सेना भेजी गई।
 
'''दूसरे'', जब भारत की विजय-वाहिनी सेनाएं कबाइलियों को खदेड़ रही थीं। सात नवम्बर को बारहमूला कबाइलियों से खाली करा लिया गया था परन्तु पं॰ नेहरू ने शेख अब्दुल्ला की सलाह पर तुरन्त युद्ध विराम कर दिया। परिणामस्वरूप कश्मीर का एक तिहाई भाग जिसमें मुजफ्फराबाद, पुंछ, मीरपुर, गिलागित आदि क्षेत्र आते हैं, पाकिस्तान के पास रह गए, जो आज भी "आजाद कश्मीर" के नाम से पुकारे जाते हैं।