"झाँसी की रानी (कविता)": अवतरणों में अंतर
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:अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
:व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
:डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
:राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
:रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
:बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
:खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,▼
कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात,▼
▲:छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात?▼
▲:कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात,
जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।▼
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,▼
▲:जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,▼
▲:बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।▼
▲:बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
रानी रोयीं रिनवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,▼
▲:खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,▼
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,▼
'नागपूर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।▼
▲:रानी रोयीं रिनवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,▼
▲:उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,▼
▲:सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।▼
▲:'नागपूर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।
▲:यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
▲:बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
▲:खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
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झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपूर,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
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