"झाँसी की रानी (कविता)": अवतरणों में अंतर

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विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
 
 
तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
:विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
अबके:अब जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार,
:काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
:युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
:पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
:बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
:खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
 
 
:तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
:किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
:घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
:घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
:बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
:खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
 
रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
 
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
:रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
:मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
:अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
:हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
:दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
:बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
:खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।