"नामदेव": अवतरणों में अंतर
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नामदेव जी का जन्म स्थान |
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'''श्री नामदेव जी''' भारत के प्रसिद्ध संत हैं।<ref>{{cite web|url=http://www.sikh-history.com/sikhhist/events/namdev.html |title=Bhagat Namdev ji |publisher=Sikh-history.com |date= |accessdate=2017-04-30}}</ref><ref>{{cite web|url=http://www.namdev.co.in/namdev.php |title=namdev universe |publisher=Namdev.co.in |date= |accessdate=2017-04-30}}</ref> विश्व भर में उनकी पहचान '''"संत शिरोमणि"''' के रूप में जानी जाती है। इनके समय में नाथ और महानुभाव पंथों का महाराष्ट्र में प्रचार था।r
'''संत शिरोमणि श्री नामदेवजी''' का जन्म "
'''संत नामदेवजी''' ने '''विसोबा खेचर''' को गुरु के रूप में स्वीकार किया था। विसोबा खेचर का जन्म स्थान पैठण था, जो पंढरपुर से पचास कोस दूर "ओंढ्या नागनाथ" नामक प्राचीन शिव क्षेत्र में हैं। इसी मंदिर में इन्होंने संत शिरोमणि श्री नामदेवजी को शिक्षा दी और अपना शिष्य बनाया। संत नामदेव, संत ज्ञानेश्वर के समकालीन थे और उम्र में उनसे 5 साल बड़े थे। संत नामदेव, संत ज्ञानेश्वर, संत निवृत्तिनाथ, संत सोपानदेव इनकी बहिन बहिन मुक्ताबाई व अन्य समकालीन संतों के साथ पूरे महाराष्ट्र के साथ उत्तर भारत का भ्रमण कर "अभंग"(भक्ति-गीत)'' रचे और जनता जनार्दन को समता और प्रभु-भक्ति का पाठ पढ़ाया। संत ज्ञानेश्वर के परलोकगमन के बाद दूसरे साथी संतों के साथ इन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया। इन्होंने मराठी के साथ साथ हिन्दी में भी रचनाएँ लिखीं। इन्होंने अठारह वर्षो तक पंजाब में भगवन्नाम का प्रचार किया। अभी भी इनकी कुछ रचनाएँ सिक्खों की धार्मिक पुस्तक " गुरू ग्रंथ साहिब" में मिलती हैं। इसमें संत नामदेवजी के 61पद संग्रहित हैं। आज भी इनके रचित अभंग पूरे महाराष्ट्र में भक्ति और प्रेम के साथ गाए जाते हैं। ये संवत १४०७ में समाधि में लीन हो गए।
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