"भारतीय कला": अवतरणों में अंतर

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*(२) भारतीय कला 'संस्कृति प्रधान' होने से 'धर्मप्रधान' हो गयी है। वास्तव में [[धर्म]] ही भारतीय कला का प्राण है। भारतीय कला धार्मिक एवं आध्यात्मिक भावनाओं से सदा अनुप्राणित रही है। किन्तु भारतीय कलाकारों ने प्रत्येक युग में 'धार्मिक कृतियों' के साथ-साथ लौकिक एवं धर्मेतर कृतियों का भी सृजन किया है क्योंकि भारतीय सामाजिक जीवन में इन्हें भी समान रूप से महत्व दिया गया था। अतः भारतीय कला को 'सामान्य जीवन की सच्ची दिग्दर्शिका' भी कहा जा सकता है।
 
::भारतीय चित्रकारी में भारतीय संस्कृति की भांति ही प्राचीनकाल से लेकर आज तक एक विशेष प्रकार की एकता के दर्शन होते हैं। प्राचीन व मध्यकाल के दौरान भारतीय चित्रकारी मुख्य रूप से धार्मिक भावना से प्रेरित थी, लेकिन आधुनिक काल तक आते-आते यह काफी हद तक लौकिक जीवन का निरुपण करती है। आज भारतीय चित्रकारी लोकजीवन के विषय उठाकर उन्हें मूर्त कर रही है।
 
*(३) '''अनामिकता''' : प्राचीन शिल्पियों और स्थापतियों ने अपना नाम और परिचय अधिकांशतः गुप्त रखा क्योंकि सृजनकर्ता के बजाय सृजन का महत्व दिया जाता था। इस कारण अधिकांश कलाकृतियाँ 'अनाम' हैं।