"भारतीय कला": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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*(२) भारतीय कला 'संस्कृति प्रधान' होने से 'धर्मप्रधान' हो गयी है। वास्तव में [[धर्म]] ही भारतीय कला का प्राण है। भारतीय कला धार्मिक एवं आध्यात्मिक भावनाओं से सदा अनुप्राणित रही है। किन्तु भारतीय कलाकारों ने प्रत्येक युग में 'धार्मिक कृतियों' के साथ-साथ लौकिक एवं धर्मेतर कृतियों का भी सृजन किया है क्योंकि भारतीय सामाजिक जीवन में इन्हें भी समान रूप से महत्व दिया गया था। अतः भारतीय कला को 'सामान्य जीवन की सच्ची दिग्दर्शिका' भी कहा जा सकता है।
*(३) '''अनामिकता''' : प्राचीन शिल्पियों और स्थापतियों ने अपना नाम और परिचय अधिकांशतः गुप्त रखा क्योंकि सृजनकर्ता के बजाय सृजन का महत्व दिया जाता था। इस कारण अधिकांश कलाकृतियाँ 'अनाम' हैं।
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