"विकिपीडिया:लघु पथ": अवतरणों में अंतर

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टुसू पर्व
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यह त्योवहार झारखंड के दक्षिण पूर्व रांची,खूंटी ,सरायकेला खरसावां,पूर्वी सिंहभूम,पश्चिम सिंहभूम, रामगढ़, बोकारो, धन्यवाद जिलों ,तथा पंचारिया क्षेत्र की प्रमुख पर्व है,टुसू पर्व पंचपरगनिया की सबसे महत्वपूर्ण त्योवहार है जिसकी शुरुआत 15 दिसंबर यानी अघन संक्रांति से शुरू होती है।
अघन संक्रांति को कुंवारी कन्याओं द्वारा टुसु(चौडड़ल) की स्थाना (थापने) की जाती है टुसू को लक्ष्मी/सरस्वती के प्रतीक के रूप में एक कन्या है जिसकी कुंवारी कन्या पूरे एक महीना सेवा (पूजा प्रार्थना) करती है जिसके अवसर पर निम्न प्रकार से प्रार्थना एवं आराधना की जाती है-
 
आमरा जे मां टुसु थापी,अघन सक्राइते गो।
अबला बाछुरेर गबर,लबन चाउरेर गुड़ी गो।।
 
तेल दिलाम सलिता दिलाम,दिलाम सरगेर बाती गो।
सकल देवता संझ्या लेव मां,लखी सरस्वती गो।।
 
गाइ आइल' बाछुर आइल',आइल' भगवती गो।
संझ्या लिएं बाहिराइ टुसू, घरेर कुल' बाती गो।।
 
इस प्रकार अघन संक्रांति से पौस/मकर संक्रान्ति (14 जनवरी) तक टुसू कन्या की सेवा की जाती है। 15/16 जनवरी को टुसू कन्या की प्रतीक रूप में चौड़ल बनाकर नदी में पारंपरिक गाजे बाजे के साथ टुसू गीत गाते हुए,नाचते डेगते विसर्जित की जाती है। घर से नदी तक रास्ते पर जुलूस के रूप में अलग अलग टोली टुसू धून में नदी तक नाचते डेगते आंतें है जिसको देखने के लोग नदी के ऊपरी स्थल(मैदान) में रास्ते के दोनों छोर पर खड़े होकर नृत्य मंडली को देखते हैं नृत्य मंडली अलग अलग गांवों से आती है जिसमें टूसू कन्या के प्रतीक रूप में चौड़ल एवं पारंपरिक वाद्य ढोल,नगाड़ा,शहनाई, बांसुरी,मांदर आदि अनेक वाद्ययंत्रों के टुसू धून में स्त्री पुरुष नाचते डेगते आते हैं। ऐसे तो यह नाच डेग पूरे रास्ते भर चलती है पर नदी के तट पर लगने वाली मेले में टुसू नृत्य अपने चरम स्थीति पर होती है। जिसको देख देखने के लिए लोगों भीड़ उमड़ पड़ती है यह दृश्य को देखकर मन,मस्तिष्क और खुशियों से मचल उठता है दृश्य देखकर दर्शक भी झूमने लगता है। ऐसा अदभुत दृश्य मकर संक्रांति के दूसरे दिन लगने वाले प्रमुख मेलों में देखने को मिलती है। इस अवसर पर बंगाल - झारखंड की सीमा स्थीत स्वर्णरेखा नदी तट पर लगने वाला सतीकहाट मेला बहुत प्रसिद्ध है यह प्राचील मेला आदि युग से लगती आ रही है। इस मेले के थोड़े ऊपर स्वर्णरेखा,कांची,राढू तीनों नदीयों का संगम होता है इस लिहाज से यह स्थान बहुत परित्र होता है। आस पास के लोगों में गया गंगा के रुप में इस स्थान को मान्यता है। मेरा देखने वालें सभी श्रद्वालु नदी में उतर कर सबरनी माता की प्रार्थना करते हैं। नदी में हाथ धोकर बैठकर गुड़पीठा मुड़ी खाने का रिवाज है,कुछ श्रद्वालु नहा-धोकर सबरनीमाता का प्रार्थना भी करते हैं। मकर संक्रांति के दिन सतीकहाट पर पंचपरगना,बंगाल,झारखंड के लाखों श्रद्धालु स्नान करने आते हैं। यह मेला दो दिन तक रहती है मकर संक्रांति को प्रारंभ होकर दूसरे दिन करोड़ों श्रद्धालु टूसूकन्या को विसर्जित करने आते जिस अवसर पर नदी के दोनों किनारों बहुत बड़े क्षेत्र में मेला लगती है और शाम को टेसू विर्सजन के सतीकहाट मेला खत्म हो जाती है इस प्रकार सतीकहाट टुसू मेला के साथ पंचपरगना के अन्य क्षेत्रों,नदी तटों पर अलग अलग मेलों का ओयन प्रारंभ हो जाता जो बसंत पंचमी तक यानी सरस्वती पुजा तक चलती है अर्थात पूरे पौस महिना टूसू मेला का आयोजन होता है।
जिनमें प्रमुख मेला -
1.हाराडी बुडा़ढ़ी टूसू मेला-सतीक हाट मेला के दिन।
2.हरिहर टुसू मेला-सतीक हाट मेला के दूसरे दिन।
3.हुडरू टुसू मेला-सतीक हाट मेला के दिन।
4.राजरप्पा टुसु मेला -सतीक हाट मेला के दिन।
5.हाथिया पत्थर मेला बोकारो- 14 जनवी।
6.छाता पोखईर मेला।
7.माठा मेला।
8.जयदा मेला।
9.पड़सा मेला।
10.हिड़िक मेला।
11.बुटगोड़ा मेला।
12.सालघाट मेला।
14.बूढ़हा बाबा जारगोडीह मेला।
15.राम मेला।
16.भूवन मेला (कुईडीह)
17.कारकिडीह मेला।
18.पुरनापानी मेला (हाड़ात)
19.सीता पाईस्ज मेला।
20.पानला मेला।
21.सुभाष मेला।(सुईसा)।
22.बूढ़हाडीह मेला।
23.बानसिंह मेला।
24.सिरगिटी मेला।
25.बेनियातुंगरी मेला।
26.कुलकुली मेला।
27.जोबला मेला।
28.इंचाडीह मेला।
29.दिवड़ी मेला।
30.सूर्य मन्दिर मेला
31.नामकोम टुसू मेला,रांची।
32.मोरावादी टुसू मेला- 3 जनवरी।
34.लादुपडीह टुसू मेला ।
35.डिरसीर-मुरूरडीह मेला।
37.बांकू टूसू मेला।
38.टायमारा टुसू मेला।
39.आड़िया नदी टुसू मेला।
40.घुरती सतीक हाट मेला।
 
इस प्रकार पूरे पौस मास तक टूसू मेला का आयोजन पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
इस तरह मेला का आयोजन की अन्य पर्व में कभी नहीं होती है भारत की कुंभ मेले के अलावे टूसू पर्व ही है पूरे ढाई महीने तक लगातार लगता है जहां कुंभ एक ही स्थान पर लगता है वहीं टुसू मेला अलग अलग नदी जगहों पर लगता है इससे प्रतीत होता है कि टुसू मेला का कितना महत्व है।
आज यह पंचपरगना ही समूचा झारखंड का प्रमुख है जिसको मानने वाले झारखंडी के सभी जातियों - विशेषकर-कुर्मी,महतो,साहु,सानिया,तेरी,गोवार,
कुम्हार,अहिर,मुंडा,संस्थान,उरांव,हो,कोइरी,गोसाईं,
सूढ़ी,मानकि,माझी आदि अनेक जातियों के समुदायों OBC,ST,SC सभी आपस में मिलजुलकर पुरे हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।
 
यह पर्व झारखंड की संस्कृति के पोषक स्वरूप है
जिसमें पुस गीत,नृत्य,वाद्य यंत्रों की मधुर संगीत है। विशेष प्रकार की रस्म है,विशेष प्रकार की मान्यता है साथ ही नये वस्त्र पहने का रिवाज है। इस प्रकार यह पर्व धार्मिक विश्वास,पारंपरिक मान्यता,नये वर्ष के आगमन और अच्छे फसल की प्राप्ति के प्रतीक में मनाया जाता है। टुसू पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
ज्योत्स्ना स्टडी सेंटर रांची।