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== काव्य में छंद का महत्त्व ==
 
* छंद से हृदय को सौंदर्यबोध होता है।
* छंद मानवीय भावनाओं को झंकृत करते हैं।
* छंद में स्थायित्व होता है।
* छंद सरस होने के कारण मन को भाते हैं।
* छंद के निश्चित आधार पर आधारित होने के कारण वे सुगमतापूर्वक कण्ठस्त हो जाते हैं।
 
'''उदाहरण''' -
 
: भभूत लगावत शंकर को, अहिलोचन मध्य परौ झरि कै।
: अहि की फुँफकार लगी शशि को, तब अंमृत बूंद गिरौ चिरि कै।
: तेहि ठौर रहे मृगराज तुचाधर, गर्जत भे वे चले उठि कै।
: सुरभी-सुत वाहन भाग चले, तब गौरि हँसीं मुख आँचल दै॥
 
अर्थात् (प्रातः स्नान के पश्चात्) पार्वती जी भगवान शंकर के मस्तक पर भभूत लगा रही थीं तब थोड़ा सा भभूत झड़ कर शिव जी के वक्ष पर लिपटे हुये साँप की आँखों में गिरा। (आँख में भभूत गिरने से साँप फुँफकारा और उसकी) फुँफकार शंकर जी के माथे पर स्थित चन्द्रमा को लगी (जिसके कारण चन्द्रमा काँप गया तथा उसके काँपने के कारण उसके भीतर से) अमृत की बूँद छलक कर गिरी। वहाँ पर (शंकर जी की आसनी) जो बाघम्बर था, वह (अमृत बूंद के प्रताप से जीवित होकर) उठ कर गर्जना करते हुये चलने लगा। सिंह की गर्जना सुनकर गाय का पुत्र - बैल, जो शिव जी का वाहन है, भागने लगा तब गौरी जी मुँह में आँचल रख कर हँसने लगीं मानो शिव जी से प्रतिहास कर रही हों कि देखो मेरे वाहन (पार्वती का एक रूप दुर्गा का है तथा दुर्गा का वाहन सिंह है) से डर कर आपका वाहन कैसे भाग रहा है।
 
== इन्हें भी देखें ==
* '''[[भारतीय छन्दशास्त्र]]'''
"https://hi.wikipedia.org/wiki/छंद" से प्राप्त