"ऋग्वेद": अवतरणों में अंतर
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ऋग्वैदिक भाषा लेख से सामग्री / इतिहास विलय (आयात) बाकी |
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मण्डल संख्या २ से ७ ऋग्वेद के सबसे पुराने और सूक्ष्मतम मंडल हैं। यह मण्डल कुल पाठ का ३८% है।
==भाषा==
उत्तर वैदिक काल से पहले का वह काल जिसमें [[ऋग्वेद]] की ऋचाओं की रचना हुई थी इन [[ऋचाओं]] की जो भाषा थी वो '''ऋग्वैदिक भाषा''' कहलाती है। ऋग्वैदिक भाषा हिंद यूरोपीय भाषा परिवार की एक भाषा है। इसकी परवर्ती पुत्री भाषाएँ [[अवेस्ता]] [[पुरानी फ़ारसी]] [[पालि]] [[प्राकृत]] और [[संस्कृत]] हैँ।
=== मातृभाषी ===
ऋग्वैदिक भाषा के मूल मातृभाषी [[हिन्द-ईरानी भाषाएँ|हिंद-इरानी आर्य]] थे।
=== व्याकरण ===
==== नामन् (संज्ञा)====
{|class="wikitable"
! !! एकवचन !! द्विवचन !! बहुवचन
|-
| '''कर्ता'''
| -स् (-म्) || -ॲउ, -ई, -ऊ (-नी) || -अस् (-नि)
|-
| '''संबोधन'''
| -स् (-) || -उ, -ई, -ऊ (-नी) || -अस् (-नि)
|-
| '''कर्म'''
| -अम् (-म्) || -ॲउ, -ई, -ऊ (-नी) || -न्, -अस् (-नि)
|-
| '''करण'''
| -ना, -या || -भ्यॅम् || -भिस्
|-
| '''संप्रदान'''
| -अइ || -भ्यॅम् || -भ्यस्
|-
| '''आपादान'''
| -अस् || -भ्यॅम् || -भ्यस्
|-
| '''संबंध'''
| -अस् || -अउस् || -नॅम
|-
| '''अधिकरण'''
| -इ, -ॲम् || -अउस् || -सु/-षु
|}
==== ऋग्वैदिक भाषा और संस्कृत में अंतर ====
जैसे होमेरिक ग्रीक क्लासिकल [[ग्रीक]] से भिन्न है वैसै [[ऋग्वैदिक भाषा]]
[[संस्कृत]] भाषा से भिन्न है। तिवारी ([1955] 2005) ने दोनोँ के बीच अंतर को निम्न सिद्धांत स्वरूप सूचित किया:
* ऋग्वैदिक भाषा में [[voiceless bilabial fricative]] ({{IPA|[ɸ]}} [[फ़]], जो ''उपधमानीय'' कहलाता था और एक अघोष वर्त्य संघर्षी [[voiceless velar fricative]] ({{IPA|[x]}}, यानि [[ख़]] जो ''जिह्वामूलीय'' कहलाता था)—यह तब प्रयोग होता है जब श्वास विसर्ग [[अः]] क्रमशः अघोष ओष्ठ्य और velar व्यंजनोँ के ठीक पहले आता है। दोनोँ ही संस्कृत में लुप्त हो गए और विसर्ग बन गए। उपधमानीय प''{{IAST|p}}'' और फ''{{IAST|ph}}'', जिह्वामूलीय क''{{IAST|k}}'' और ख''{{IAST|kh}}'' से ठीक पहले आता है।
* ऋग्वैदिक भाषा में [[retroflex lateral approximant]] [[ळ]]({{IPA|[ ɭ ]}}) और इसका [[बलाघाती]] सहायक {{IPA|[ɭʰ]}} [[ळ्ह]] भी, संस्कृत में लुप्त हो गए, {{IPA|[ɖ]}} (ड़) और {{IPA|[ɖʱ]}} (ढ़) में बदल गए। (''क्षेत्रानुसार; वैदिक उच्चारण अभी तक कुछ क्षेत्रोँ में मौलिक हैँ, जैसे. दक्षिण भारत, महाराष्ट्र सहित''.)
* अक्षरात्मक {{IPA|[ɻ̩]}} (ऋ), {{IPA|[l̩]}} (लृ) और उनके दीर्घ स्वर उत्तर ऋग्वैदिक काल में लुप्त हो गए। बाद में {{IPA|[ɻi]}} (रि) और {{IPA|[li]}} (ल्रि) के रूप उच्चारित होने लगा.
* स्वर '''e''' (ए) और '''o''' (ओ) वैदिक में अइ {{IPA|[ai]}} और अउ {{IPA|[au]}} रूप में उच्चारित हो, पर बाद में संस्कृत में ये पूर्ण शुद्ध ए {{IPA|[eː]}} और ओ {{IPA|[oː]}} हो गए।.
* स्वर '''ai''' (ऐ) और '''au''' (औ) वैदिक में {{IPA|[aːi]}} (आइ) और {{IPA|[aːu]}} (आउ) हो गए, पर संस्कृत मे ये {{IPA|[ai]}} (अइ) और {{IPA|[au]}} (अउ) हो गए।
* [[प्रातिशाख्यस्]] का दावा है कि दंत्य व्यंजन वस्तुतः दाँतोँ की जड़ (''दंतमूलीय'') थे, पर बाद में पूर्ण दंत्य हो गए। इसमें {{IPA|[r]}} र भी है जो बाद में retroflex हो गया।
* वैदिक में [[सुर]] का बड़ा महत्व था जो कभी भी शब्द का अर्थ बदल देता था और पाणिनि से पहले तक सुरक्षित था। आजकल, सुरभेद केवल पारंपरिक वैदिक में पाया जाता है, बजाय इसके संस्कृत एक [[राग]] भेदी भाषा है।
* [[प्लुति]] स्वर या ([[त्रैमात्रिक स्वर]]) वैदिक में ध्वन्यात्मक थे पर संस्कृत में लुप्त हो गए।
* वैदिक में दो समान स्वरोँ में संधि के दौरान विकार न होकर मूल ध्वनि सुरक्षित रहती है।
=== अवेस्तान और ऋग्वैदिक भाषा की तुलना ===
१९वीं शताब्दी में [[अवस्ताई भाषा|अवस्ताई फ़ारसी]] और ऋग्वैदिक भाषा दोनों पर पश्चिमी विद्वानों की नज़र नई-नई पड़ी थी और इन दोनों के गहरे सम्बन्ध का तथ्य उनके सामने जल्दी ही आ गया। उन्होने देखा के अवस्ताई फ़ारसी और ऋग्वैदिक भाषा के शब्दों में कुछ सरल नियमों के साथ एक से दुसरे को अनुवादित किया जा सकता था और व्याकरण की दृष्टि से यह दोनों बहुत नज़दीक थे। अपनी सन् १८९२ में प्रकाशित किताब "अवस्ताई व्याकरण की संस्कृत से तुलना और अवस्ताई वर्णमाला और उसका लिप्यन्तरण" में भाषावैज्ञानिक और विद्वान एब्राहम जैक्सन ने उदहारण के लिए एक अवस्ताई धार्मिक श्लोक का ऋग्वैदिक भाषा में सीधा अनुवाद किया।
{| cellpadding="5"
||
:'''मूल अवस्ताई'''
||
:'''वैदिक संस्कृत अनुवाद'''
|-
|style="font-size:100%"|
:तम अमवन्तम यज़तम
:सूरम दामोहु सविश्तम
:मिथ़्रम यज़ाइ ज़ओथ़्राब्यो
|style="font-size:100%"|
:तम आमवन्तम यजताम
:शूरम धामेसु शाविष्ठम
:मित्राम यजाइ होत्राभ्यः
|}
== गठन ==
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