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== इतिहास ==
वैदिक स्रोतों के मुताबिक आर्यों की विदेह शाखा ने अग्नि के संरक्षण में [[सरस्वती]] तट से पूरब में सदानीरा ([[गंडक]]) की ओर कूच किया और विदेह राज्य की स्थापना की। विदेह के राजा ''मिथि'' के नाम पर यह प्रदेश [[मिथिला]] कहलाने लगा। रामायणकाल में मिथिला के एक राजा जो जनक कहलाते थे, सिरध्वज जनक की पुत्री [[सीता]] थी।<ref>http://www.amarujala.com/news/spirituality/religion-festivals/ramayan-sita-daughter-of-king-janak/</ref> विदेह राज्य का अंत होने पर यह प्रदेश [[वैशाली]] गणराज्य का अंग बना। इसके पश्चात यह मगध के [[मौर्य]], [[शुंग]], [[कण्व]] और [[गुप्त]] शासकों के महान साम्राज्य का हिस्सा रहा। १३ वीं सदी में पश्चिम [[बंगाल]] के मुसलमान शासक हाजी शम्सुद्दीन इलियास के समय मिथिला एवं तिरहुत क्षेत्रों का बँटवारा हो गया। उत्तरी भाग जिसके अंतर्गत [[मधुबनी]], दरभंगा एवं [[समस्तीपुर]] का उत्तरी हिस्सा आता था, सुगौना के ओईनवार राजा कामेश्वर सिंह के अधीन रहा। ओईनवार राजाओं को कला, संस्कृति और साहित्य का बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है। कुमारिल भट्ट, मंडन मिश्र, गदाधर पंडित, शंकर, वाचास्पति मिश्र, विद्यापति, नागार्जुन ,चन्द्र मोहन पोद्दार आदि महान विद्वानों के लेखन से इस क्षेत्र ने प्रसिद्धि पाई। ओईनवार राजा शिवसिंह के पिता देवसिंह ने लहेरियासराय के पास देवकुली की स्थापना की थी। शिवसिंह के बाद यहाँ पद्मसिंह, हरिसिंह, नरसिंहदेव, धीरसिंह, भैरवसिंह, रामभद्र, लक्ष्मीनाथ, कामसनारायण राजा हुए। शिवसिंह तथा भैरवसिंह द्वारा जारी किए गए सोने एवं चाँदी के सिक्के यहाँ के इतिहास ज्ञान का अच्छा स्रोत है। <br />
दरभंगा शहर १६ वीं सदी में दरभंगा राज की राजधानी थी। १८४५ इस्वी में ब्रिटिश सरकार ने दरभंगा सदर को अनुमंडल बनाया और १८६४ ईस्वी में दरभंगा शहर नगर निकाय बन गया।<ref>http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE [http://www.britannica.com/EBchecked/topic/151448/Darbhanga]</ref> १८७५ में स्वतंत्र जिला बनने तक यह [[तिरहुत]] के साथ था। १९०८ में तिरहुत के प्रमंडल बनने पर इसे [[पटना]] प्रमंडल से हटाकर तिरहुत में शामिल कर लिया गया। स्वतंत्रता के पश्चात १९७२ में दरभंगा को प्रमंडल का दर्जा देकर [[मधुबनी]] तथा [[समस्तीपुर]] को इसके अंतर्गत रखा गया।