No edit summary
पंक्ति 5:
 
== वर्गीकरण ==
आगम [[साहित्य]] भी दो भागों में विभक्त है: '''अंगप्रविष्ट और ''' अंगबाह्म'''।
 
===[[अंग]]===
अंगों की संख्या 12 है। उन्हें गणिपिटक या द्वादशांगी भी कहा जाता है:
*1- [[आचारांग]]
पंक्ति 26:
इसके अतिरिक्त जितने आगम हैं वे सब अंगबाह्म हैं; क्योंकि अंगप्रविष्ट केवल गणधरकृत आगम ही माने जाते हैं। गणधरों के अतिरिक्त श्रुत केवली, पुर्वधर आदि ज्ञानी पुरुषों द्वारा रचित आगम अंगबाह्म माना जाता है।
 
आगमों की मान्यता के विषय में भिन्न -भिन्न परंपराएँ हैं। दिगंबर आम्नाय में आगमेतरमानते साहित्यहैं हीकि है,आगम वेका आगमबहुभाग लुप्त हो चुके,चुका ऐसा मानते हैं।है। श्वेतांबर आम्नाय में एक परंपरा 84 आगम मानती है, एक परंपरा उपर्युक्त 45 आगमों को आगम के रूप में स्वीकार करती है तथा एक परंपरा महानिशीथ ओषनिर्युक्ति, पिंडनिर्युक्ति तथा 10 प्रकीर्ण सूत्रों को छोड़कर शेष 32 को स्वीकार करती है।
 
इसका मूल कारण ये हैं कि श्वेताम्बर परंपरा अनुसार आचार्य देवर्धिगनीक्षमा श्रमण ने 84 आगमों को लिपिबद्ध किया था किन्तु समय के साथ कई आगम स्वतः नष्ट हो गए, कुछ मुग़ल शासकों के राज में नष्ट कर दिए गए एवं कई आगम इतने प्रभावशाली थे की उनके स्मरण से देवतागण आ जाते थे, अतः ऐसी विद्या के दुरूपयोग से बचने हेतु गीतार्थ साधुओं ने उसे भंडारस्थ कर दिया।