"वेदव्यास": अवतरणों में अंतर

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| पुत्र = शुकदेव
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'''ऋषि कृष्ण द्वेपायन वेदव्यास''' [[महाभारत]] ग्रंथ के रचयिता थे। महाभारत के बारे में कहा जाता है कि इसे महर्षि वेदव्यास के [[गणेश]] को बोलकर लिखवाया था।<ref>{{cite web|url=https://www.bbc.com/hindi/vert-cul-44008114|title=कैसे बनी ये दुनियाः होमर के इलियड में देवताओं और युद्ध की दास्तान}}</ref> वेदव्यास महाभारत के रचयिता ही नहीं, बल्कि उन घटनाओं के साक्षी भी रहे हैं, जो क्रमानुसार घटित हुई हैं। अपने आश्रम से हस्तिनापुर की समस्त गतिविधियों की सूचना उन तक तो पहुंचती थी। वे उन घटनाओं पर अपना परामर्श भी देते थे। जब-जब अंतर्द्वंद्व और संकट की स्थिति आती थी, माता सत्यवती उनसे विचार-विमर्श के लिए कभी आश्रम पहुंचती, तो कभी हस्तिनापुर के राजभवन में आमंत्रित करती थी। प्रत्येक द्वापर युग में विष्णु व्यास के रूप में अवतरित होकर [[वेद|वेदों]] के विभाग प्रस्तुत करते हैं। पहले द्वापर में स्वयं ब्रह्मा वेदव्यास हुए, दूसरे में प्रजापति, तीसरे द्वापर में [[शुक्राचार्य]], चौथे में [[बृहस्पति]] वेदव्यास हुए। इसी प्रकार सूर्य, मृत्यु, इन्द्र, धनजंय, कृष्ण द्वैपायन अश्वत्थामा आदि अट्ठाईस वेदव्यास हुए। इस प्रकार अट्ठाईस बार वेदों का विभाजन किया गया। उन्होने ही अट्ठारह [[पुराण|पुराणों]] की भी रचना की, ऐसा माना जाता है। वेदव्यास यह व्यास मुनि तथा पाराशर इत्यादि नामों से भी जाने जाते है। वह पराशर मुनि के पुत्र थे, अत: व्यास 'पाराशर' नाम से भि जाने जाते है।
 
 
महर्षि वेदव्यास को भगवान का ही रूप माना जाता है, इन श्लोकों से यह सिद्ध होता है।
'''ऋषि कृष्णमहर्षि द्वेपायनकृष्णद्वैपायन वेदव्यास''' [[महाभारत]] ग्रंथ के रचयिता थे। महाभारत केग्रंथ बारेका मेंलेखन कहाभगवान् जाता[[गणेश]] है कि इसेने महर्षि वेदव्यास के [[गणेश]]से कोसुन बोलकरसुनकर लिखवायाकिया था।<ref>{{cite web|url=https://www.bbc.com/hindi/vert-cul-44008114|title=कैसे बनी ये दुनियाः होमर के इलियड में देवताओं और युद्ध की दास्तान}}</ref> वेदव्यास महाभारत के रचयिता ही नहीं, बल्कि उन घटनाओं के साक्षी भी रहे हैं, जो क्रमानुसार घटित हुई हैं। अपने आश्रम से हस्तिनापुर की समस्त गतिविधियों की सूचना उन तक तो पहुंचती थी। वे उन घटनाओं पर अपना परामर्श भी देते थे। जब-जब अंतर्द्वंद्व और संकट की स्थिति आती थी, माता सत्यवती उनसे विचार-विमर्श के लिए कभी आश्रम पहुंचती, तो कभी हस्तिनापुर के राजभवन में आमंत्रित करती थी। प्रत्येक द्वापर युग में विष्णु व्यास के रूप में अवतरित होकर [[वेद|वेदों]] के विभाग प्रस्तुत करते हैं। पहले द्वापर में स्वयं ब्रह्मा वेदव्यास हुए, दूसरे में प्रजापति, तीसरे द्वापर में [[शुक्राचार्य]], चौथे में [[बृहस्पति]] वेदव्यास हुए। इसी प्रकार सूर्य, मृत्यु, इन्द्र, धनजंय, कृष्ण द्वैपायन अश्वत्थामा आदि अट्ठाईस वेदव्यास हुए। इस प्रकार अट्ठाईस बार वेदों का विभाजन किया गया। उन्होने ही अट्ठारह [[पुराण|पुराणों]] की भी रचना की, ऐसा माना जाता है। वेदव्यास यह व्यास मुनि तथा पाराशर इत्यादि नामों से भी जाने जाते है। वह पराशर मुनि के पुत्र थे, अत: व्यास 'पाराशर' नाम से भि जाने जाते है।
<blockquote>नमोऽस्तु ते व्यास विशालबुद्धे फुल्लारविन्दायतपत्रनेत्र।
 
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार महर्षि वेदव्यास स्वयं ईश्वर के स्वरूप थे। निम्नोक्त श्लोकों से इसकी पुष्टि होती है।
<blockquote>नमोऽस्तु ते व्यास विशालबुद्धे फुल्लारविन्दायतपत्रनेत्र।फुल्लारविन्दायतपत्रनेत्रः।
 
येन त्वया भारततैलपूर्णः प्रज्ज्वालितो ज्ञानमयप्रदीपः।।