"सनकादि ऋषि": अवतरणों में अंतर

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इन सृष्टियों से ब्रह्मा जी को संतुष्टि न मिली तब उन्होंने मन में नारायण का ध्यान कर मन से दशम सृष्टि सनकादि मुनियों की थी जो साक्षात् भगवान ही थे। ये सनकादि चार सनत, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार नामक महर्षि हैं तथा इनकी आयु सदैव पाँच वर्ष की रहती है।
ब्रह्मा जी नें उन बालकों से कहा कि पुत्र जाओ सृष्टि करो।
सनकादि मुनियों नें ब्रह्मा जी से कहा "पिताश्री! क्षमा करें। हमारे हेतु यह माया तो अप्रत्यक्ष है, हम भगवान की उपासना से बड़ा किसी वस्तु को नहीं मानते अतः हम भई जाकर उन्हीं की भक्ति करेंगे।" और सनकादि मुनि वहाँ से चल पड़े। वे वहीं जाया करते हैं जहाँ परमात्मा का भजन होता है। नारद जी को इन्होंने भागवत सुनाया था तथा ये स्वयं भगवान शेष से भागवत श्रवण किये थे। ये जितने छोटे दिखते हैं उतनी ही विद्याकंज हैं। ये चारो वेदों के ही रूप कहे जा सकते हैं।<ref>[[भागवत]]http://hi.krishnakosh.org/कृष्ण/श्रीमद्भागवत_महापुराण_तृतीय_स्कन्ध_अध्याय_10_श्लोक_17-29 श्रीमद्भागवत महापुराण तृतीय स्कंध अध्याय १०]</ref>
 
==शक्तियाँ, वाहन और देवता==