"शिव": अवतरणों में अंतर
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=== शिव स्वरूप शंकर जी ===
पृथ्वी पर बीते हुए इतिहास में [[सत्य युग|सतयुग]] से [[कलियुग|कलयुग]] तक, एक ही मानव शरीर एैसा है जिसके ललाट पर ज्योति है। इसी स्वरूप द्वारा जीवन व्यतीत कर परमात्मा ने मानव को वेदों का ज्ञान प्रदान किया है जो मानव के लिए अत्यंत ही कल्याणकारी साबित हुआ है। '''''वेदो शिवम शिवो वेदम।।''''' परमात्मा शिव के इसी स्वरूप द्वारा मानव शरीर को रुद्र से शिव बनने का ज्ञान प्राप्त होता है।
जय हो शिव की।
=== शिवलिंग ===
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