→सरकार गिराने और सरकार बनाने में सबसे माहिर खिलाड़ी
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ये जून के आखिरी सप्ताह की बात है. चिमनभाई पटेल अपनी दावेदारी पेश करने के लिए इंदिरा गांधी से मिलने पहुंचे. जगह थी बॉम्बे का राजभवन. करीब 20 मिनट तक चली इस मुलाक़ात में दोनों तरफ गर्मी काफी बढ़ गई. अंत में चिमनभाई पटेल ने इंदिरा गांधी को तल्ख़ अंदाज में कहा, “आप यह तय नहीं कर सकती कि गुजरात में विधायक दल का नेता कौन होगा. यह चीज वहां के विधायक ही तय करेंगे.”
इंदिरा गांधी: कांग्रेस में उनकी हर बात नियम बन जाती थी.इंदिरा के लिए यह नई बात थी. अब तक कांग्रेस में किसी भी नेता ने उनके सामने फन्ने खां बनने की जुर्रत नहीं की थी. उनका फैसला ही पार्टी का फैसला होता था. इंदिरा कुछ नहीं बोली. उन्होंने चिमनभाई को तत्कालीन विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह से मिलने के निर्देश दिए. स्वर्ण सिंह उस समय गुजरात कांग्रेस के प्रभारी भी हुआ करते थे. चिमन भाई ने बॉम्बे से दिल्ली के लिए फ्लाइट ली और उसी रात दिल्ली में स्वर्ण सिंह से मुलाकात की. स्वर्ण सिंह के साथ हुई बातचीत के बाद यह तय हुआ कि गुजरात में विधायक दल नए मुख्यमंत्री का चुनाव गुप्त मतदान के जरिए करेगा.▼
▲इंदिरा के लिए यह नई बात थी. अब तक कांग्रेस में किसी भी नेता ने उनके सामने फन्ने खां बनने की जुर्रत नहीं की थी. उनका फैसला ही पार्टी का फैसला होता था. इंदिरा कुछ नहीं बोली. उन्होंने चिमनभाई को तत्कालीन विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह से मिलने के निर्देश दिए. स्वर्ण सिंह उस समय गुजरात कांग्रेस के प्रभारी भी हुआ करते थे. चिमन भाई ने बॉम्बे से दिल्ली के लिए फ्लाइट ली और उसी रात दिल्ली में स्वर्ण सिंह से मुलाकात की. स्वर्ण सिंह के साथ हुई बातचीत के बाद यह तय हुआ कि गुजरात में विधायक दल नए मुख्यमंत्री का चुनाव गुप्त मतदान के जरिए करेगा.
इस चुनाव पर नज़र रखने के लिए स्वर्ण सिंह खुद गुजरात गए. गांधी नगर में कांग्रेस के सभी 139 विधायकों को इकठ्ठा किया गया. मुख्यमंत्री पद के लिए उम्मीदवार थे, चिमनभाई पटेल और कांतिलाल घिया. सभी मत इकट्ठे करने के बाद स्वर्ण सिंह बैलट बॉक्स को वहां खोलने की बजाय दिल्ली लेकर चले आए थे. यह कांग्रेस के इतिहास में पहली बार हो रहा था. इससे पहले मुख्यमंत्रियों का चुनाव इंदिरा गांधी के हाथ में होता था. विधायक दल रस्मी तौर पर उस पर निर्विरोध मोहर लगाता था.
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