"गुरु गोबिन्द सिंह": अवतरणों में अंतर

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१०वें गुरु बनने के बाद भी आपकी शिक्षा जारी रही। शिक्षा के अन्तर्गत लिखना-पढ़ना, घुड़सवारी तथा धनुष चलाना आदि सम्मिलित था। १६८४ में उन्होने [[चंडी दी वार]] कि रचना की। १६८५ तक आप [[यमुना नदी]] के किनारे [[पाओंटा साहिब|पाओंटा]] नामक स्थान पर रहे।
 
गुरु गोबिन्द सिंह की तीन पत्नियाँ थीं। 21जून, 1677 को 10 साल की उम्र में उनका [[विवाह]] माता जीतो के साथ आनंदपुर से 10 किलोमीटर दूर [[बसंतगढ़]] में किया गया। उन दोनों के 3 पुत्र हुए जिनके नाम थे – जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फ़तेह सिंह। 4 अप्रैल, 1684 को 17 वर्ष की आयु में उनका दूसरा विवाह माता सुंदरी के साथ आनंदपुर में हुआ। उनका एक बेटा हुआ जिसका नाम था अजित सिंह। 15 अप्रैल, 1700 को 33 वर्ष की आयु में उन्होंने माता साहिब देवन से विवाह किया। वैसे तो उनका कोई संतान नहीं था पर सिख धर्म के पन्नों पर उनका दौर भी बहुत प्रभावशाली रहा।<ref>{{cite web|url=http://www.1hindi.com/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81-%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9-guru-gobind-singh-ji-biography-history-in-hindi/|title=''गुरु गोबिंद सिंह जी की जीवनी - उनकी पत्नियाँ ''|publisher=1Hindi.com|accessdate=2006-11-07}}</ref>
 
== आनन्दपुर साहिब को छोड़कर जाना और वापस आना ==