"दांडी मार्च": अवतरणों में अंतर

गांधी जी के महत्त्व एवं योगदान
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 4:
'''दांडी मार्च''' जिसे '''नमक मार्च''', '''दांडी सत्याग्रह''' के रूप में भी जाना जाता है जो इसवीसन 1930 में [[महात्मा गांधी]] के द्वारा अंग्रेज सरकार के नमक के ऊपर कर लगाने के कानून के विरुद्ध किया गया सविनय कानून भंग कार्यक्रम था। ये ऐतिहासिक सत्याग्रह कार्यक्रम गाँधीजी समेत ७८ लोगों के द्वारा [[अहमदाबाद]] [[साबरमती आश्रम]] से समुद्रतटीय गाँव दांडी तक पैदल यात्रा करके [[१२ मार्च]] १९३० को नमक हाथ में लेकर [[नमक कर|नमक विरोधी कानून]] का भंग किया गया था। भारत में अंग्रेजों के शाशनकाल के समय नमक उत्पादन और विक्रय के ऊपर बड़ी मात्रा में कर लगा दिया था और नमक जीवन जरूरी चीज होने के कारण भारतवासियों को इस कानून से मुक्त करने और अपना अधिकार दिलवाने हेतु ये सविनय अवज्ञा का कार्यक्रम आयोजित किया गया था। कानून भंग करने के बाद सत्याग्रहियों ने अंग्रेजों की लाठियाँ खाई थी परंतु पीछे नहीं मुड़े थे।
 
==पूर्व भूमिका==सबको लाठी पड़ती थी एक गांधी को छोड़कर क्योंकि की जवाहर लाल नेहरू उस वक़्त के केजरीवाल थे अगर गांधी को कुछ हो जाता तो उनका पीएम का सपना चकनाचूर हो जाता
==पूर्व भूमिका==
1930 को गाँधी जी ने इस आंदोलन का चालू किया। इस आंदोलन में लोगें ने गाँधी के साथ पैदल यात्रा की ओर जो नमक पर कर लगाया था। उसका विरोध किया । इस आंदोलन में कई नेताओं को गिरप्तार कर लिया जैसे-राजगोपालचारी,नहेरू, आदि। ये आंदोलन पूरे एक साल चला। ओर 1931 को गांधी-इर्विन समझौते से खत्म हो गया।