"इन्द्रजीत गुप्त": अवतरणों में अंतर

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कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र विषय में ऑनर्स की डिग्री प्राप्त करने के बाद वर्ष 1940 में इन्द्रजीत भारत लौट आये। यहाँ लौटने के पश्चात उन्होंने भारत की कम्युनिस्ट पार्टी, जो कि उस समय अवैध थी व भूमिगत रूप से कार्य कर रही थी, की पूर्णकालिक सदस्यता ग्रहण कर ली।
 
==ट्रेड यूनियन में काम==
 
सन 1942 में उन्होंने एटक के नेतृत्व में बंगाल में ट्रेड यूनियन के क्षेत्र में कार्य प्रारम्भ किया। उन्होंने जूट मजदूर आन्दोलन के साथ ट्रेड यूनियन के जीवन की शुरुआत की। वह विभिन्न ट्रेड यूनियनों जैसे कि जूट, टेक्सटाइल, पोर्ट व डॉक मजदूर आदि के अध्यक्ष चुने गए। वह औद्योगिक न्यायाधिकरण में एक अच्छे मध्यस्थ थे।
 
एक सक्रिय ट्रेड यूनियन नेता गुप्त 1980 में एटक के महासचिव चुने गए और 1990 तक इस पद पर बने रहे। वह ‘वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियन्स’ (डब्ल्यू.एफ.टी.यू.) के कार्याकलापों से भी काफी निकट से जुड़े हुए थे।1998 में वह डब्ल्यू.एफ.टी.यू. के अध्यक्ष चुने गए और 2000 में डब्ल्यू.एफ.टी.यू. की दिल्ली कांग्रेस में उन्हें संगठन का मानद अध्यक्ष चुना गया। उन्हें दुनिया भर के मजदूर वर्ग का प्यार और सम्मान प्राप्त था और वह जीवन भर मजदूर वर्ग के हितों के लिए संघर्षरत रहे। उन्होंने श्रमिकों के सामने आने वाली समस्याओं को संसद और संसद के बाहर दोनों ही स्थानों पर बड़े प्रभावी ढंग से अभिव्यक्ति दी।
 
==सीपीआई के महासचिव==
 
1989 में वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के उप महासचिव और 1990 में महासचिव चुने गए। वह 1996 तक इस पद पर रहे। गुप्त जी ने 1960 में पश्चिम बंगाल के कोल्कता दक्षिण-पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र से उपचुनाव में पहली बार लोकसभा के लिए चुने जाकर 1977 तथा 1980 को छोड़कर अपने जीवन के अंतिम समय तक कुल 11 बार भारतीय संसद के लिए चुने जाने का गौरव प्राप्त किया। संसद के वरिष्ठ सदस्य होने के नाते गुप्त जी को ‘फ़ादर ऑफ़ द हाउस’ के नाम से जाना जाता था।
 
==उत्कृष्ट सांसद==
 
उत्कृष्ट सांसद माने गए इन्द्रजीत गुप्त ने स्वयं को एक प्रखर वक्ता के रूप में सिद्ध किया था, जिन्हें सभा के नियमों-विनियमों और प्रक्रियाओं का पूर्ण ज्ञान था। संसद में सामयिक विषयों पर बहस के दौरान अपने प्रभावशाली एवं अकाट्य तर्कों और असाधारण वाक् कला से वह सभा को वशीभूत कर लेते थे। वह विश्लेषण में माहिर थे और इसी से वे जटिल से जटिल राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक मुद्दों को अत्यंत विश्वसनीय तरीके से प्रस्तुत करने में समर्थ थे। उनका भाषण कौशल अद्वितीय था और वह अनेक विषयों पर साधिकार बोल सकते थे। वह जेंडर समानता के पक्षधर थे और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए विशेष व ठोस योजनाओं तथा विधायी एवं प्रशासनिक उपायों के लिए कार्यवाही करने की मांग करने में सबसे आगे रहते थे। वह मधुर भाषी थे जिन्होंने संसद के भीतर और बाहर होने वाले वाद विवादों को समृद्ध किया। वह सार्वजनिक जीवन में उच्च चरित्र एवं आदर्श को स्थापित करने के समर्थक थे और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन तथा राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ मुहिम में अग्रणी थे। देश में संसदीय लोकतंत्र और संसदीय संस्थाओं को सुदृढ़ बनाने में उनके शानदार योगदान के लिए उन्हें वर्ष 1992 में पहले ‘भारत रत्न पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त उत्कृष्ट संसदविद पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।