"जैन दर्शन": अवतरणों में अंतर

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== अहिंसा ==
{{मुख्य|अहिंसा}}
जैन दर्शन में काइसका सूक्ष्म विवेचन हुआ है। इसका एक मुख्य कारण यह है कि इसका प्ररूपण सर्वज्ञ-सर्वदर्शी (जिनके ज्ञान से संसार की कोई भी बात छुपी हुई नहीं है, अनादि भूतकाल और अनंत भविष्य के ज्ञाता-दृष्टा), वीतरागी (जिनको किसी पर भी राग-द्वेष नहीं है) प्राणी मात्र के हितेच्छुक, अनंत अनुकम्पा युक्त जिनेश्वर भगवंतों द्वारा हुआ है। जिनके बताये हुए मार्ग पर चल कर प्रत्येक आत्मा अपना कल्याण कर सकती है।
 
अपने सुख और दुःख का कारण जीव स्वयं है, कोई दूसरा उसे दुखी कर ही नहीं सकता.पुनर्जन्म, पूर्वजन्म, बंध-मोक्ष आदि जिनधर्म मानता है। अहिंसा, सत्य, तप ये इस धर्म का मूल है।