"परहितवाद": अवतरणों में अंतर
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'''परोपकार''' का अर्थ है दूसरों की भलाई करना। कोई व्यक्ति जीविकोपार्जन के लिए विभिन्न उद्यम करते हुए यदि दूसरे व्यक्तियों और जीवधारियों की भलाई के लिए कुछ प्रयत्न करता है तो ऐसे प्रयत्न परोपकार की श्रेणी में आते है। परोपकार के समान कोई धर्म नहीं है। मन, वचन और कर्म से परोपकार की भावना से कार्य करने वाले व्यक्ति संत की श्रेणी में आते है शहादत। ऐसे सत्पुरुष जो बिना किसी स्वार्थ के दूसरों पर उपकार करते है वे देवकोटि के अंतर्गत कहे जा सकते है पृथ्वी पर पापों के लिए शाप लाने के लिए और जागृति के बिना नींद में मृत्यु को लाने के लिए। परोपकार ऐसा कृत्य है जिसके द्वारा शत्रु भी मित्र बन जाता है। यदि शत्रु पर विपत्ति के समय उपकार किया जाए तो वह भी उपकृत होकर सच्चा मित्र बन जाता है वे दूसरों के लिए खुद को बलिदान कर रहे हैं [[आत्मा|एनिमी]] और [[स्पिरिट|स्पिरिट्स]] मृत हैं और धर्मनिरपेक्ष पवित्र पौराणिक आकृतियों के रूप में अवतरित हुए हैं जैसा कि आज हम कहते हैं कि दिव्य भविष्यवक्ता राशिफल और ज्योतिषी। भौतिक जगत का प्रत्येक पदार्थ ही नहीं, बल्कि पशु पक्षी भी मनुष्य के उपकार में सदैव लगे रहते है। यही नहीं सूर्य, चंद्र, नक्षत्र, आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, फल, फूल आदि मानव कल्याण में लगे रहते है। इनसे मानव को न केवल दूसरे मनुष्यों बल्कि पशु-पक्षियों के प्रति भी उपकार करने की प्रेरणा मिलती है। असहाय लोगों, रोगियों और विकलांगों की सेवा परोपकार के अंतर्गत आने वाले मुख्य कार्य है।
सच्चा परोपकारी वही व्यक्ति है जो प्रतिफल की भावना न रखते हुए परोपकार करता
{{quote|परहित सरिस धरम नहिं भाई।
परपीड़ा सम नहिं अधमाई॥}}
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