"छायावाद": अवतरणों में अंतर

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{{स्रोत कम|date=नवम्बर 2014}}
'''छायावाद''' [[हिंदी]] साहित्य के रोमांटिक उत्थान की वह काव्य-धारा है जो लगभग ई.स. १९१८ से १९३ तक की प्रमुख युगवाणी रही।<ref>हिन्दी साहित्य कोश, भाग १, प्रधान सम्पादक - धीरेन्द्र वर्मा, प्रकाशक- ज्ञानमण्डल लिमिटिड वाराणसी, तृतीय संस्करण १९८५, पृष्ठ २५१</ref> [[जयशंकर प्रसाद]], [[सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला']], [[पंत]], [[महादेवी वर्मा]] इस काव्य धारा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। छायावाद नामकरण का श्रेय [[मुकुटधर पाण्डेय]] को जाता है।<ref>हिन्दी साहित्य का अद्यतन इतिहास, डा॰ मोहन अवस्थी, संस्करण १९८३, प्रकाशक- सरस्वती प्रेस इलाहाबाद, पृष्ठ २५९</ref>
आत्माभिव्यक्ति, प्रकृति प्रेम, नारी प्रेम, मानवीकरण, सांस्कृतिक जागरण, कल्पना की प्रधानता आदि छायावादी काव्य की प्रमुख विशेषताएं हैं। छायावाद ने हिंदी में खड़ी बोली कविता को पूर्णतः प्रतिष्ठित कर दिया। इसके बाद ब्रजभाषा हिंदी काव्य धारा से बाहर हो गई। इसने हिंदी को नए शब्द, प्रतीक तथा बिंबप्रतिबिंब दिए। इसके प्रभाव से इस दौर की गद्य की भाषा भी समृद्ध हुई।
इसे 'साहित्यिक खड़ीबोली का स्वर्णयुग' कहा जाता है।
 
छायावाद के नामकरण का श्रेय 'मुकुटधर पांडेय' को दिया जाता है।इसहोनेहै। इन्होंने सर्वप्रथम 1920 ई में [[जबलपुर]] से प्रकाशित एक पत्रिका में 'हिंदी में छायावाद' के नाम से एक लेख प्रकाशित करवाया।करवाया था।
 
== परिचय ==