"रघुवंशम्": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
No edit summary टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
||
पंक्ति 76:
अयोध्या की पूर्व ख्याति और वर्तमान स्थिति का वर्णन कुश के स्वप्न के माध्यम से कवि ने बडी़ कुशलता से सोलहवें सर्ग में किया है। अन्तिम सर्ग में रघुवंश के अन्तिम राजा अग्निवर्ण के भोग-विलास का चित्रण किया गया है। राजा के दम्भ की पराकाष्ठा यह है कि जनता जब राजा के दर्शन के लिए आती है तो अग्निवर्ण अपने पैर खिड़की के बाहर पसार देता है। जनता के अनादर का परिणाम राज्य का पतन होता है और इस प्रकार एक प्रतापी वंश की इति भी हो जाती है।
== रामायण और रघुवंश
कालिदास जानते थे कि राम की कथा का उत्कर्ष वाल्मिकि की रामायण से हो गया था और उसके बाद जो भी लिखा जाएगा उसका जूठन ही होगा। इसीलिए उन्होंने अपने काव्य में राम को नायक बनाने की बजाय रघुवंश को ही कथानायक के रूप में प्रस्तुत किया; जिसमें सभी पात्रों की अपनी-अपनी भूमिका रही- अपने-अपने चरित्र के आधार पर....कुछ उत्कर्ष तो कुछ घटिया। रघुवंश का नाम उनके पराक्रमी और आदर्श राजाओं के नाम से ही चलता रहेगा।
|