"उपसर्ग": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
No edit summary टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
अनुनाद सिंह द्वारा सम्पादित संस्करण 4073180 पर पूर्ववत किया। (ट्विंकल) टैग: किए हुए कार्य को पूर्ववत करना |
||
पंक्ति 92:
अत्युत्कृष्ट, निर्विकार, सुसंगति इत्यादि
; उर्दू-फारसी के उपसर्ग
Line 169 ⟶ 132:
*(३) '''किसी प्रकार का उत्पात, उपद्रव या विघ्न'''
::[[योग|योगियों]] की योगसाधना के बीच होनेवाले विघ्न को उपसर्ग कहते हैं। ये पाँच प्रकार के बताए गए हैं : (1) प्रतिभ, (2) श्रावण, (3) दैव, (4)। मुनियों पर होनेवाले उक्त उपसर्गों के विस्तृत विवरण मिलते हैं। [[जैन धर्म|जैन]] साहित्य में विशेष रूप से इनका उल्लेख रहता है क्योंकि जैन धर्म के अनुसार साधना करते समय
▲::[[योग|योगियों]] की योगसाधना के बीच होनेवाले विघ्न को उपसर्ग कहते हैं। ये पाँच प्रकार के बताए गए हैं : (1) प्रतिभ, (2) श्रावण, (3) दैव, (4)। मुनियों पर होनेवाले उक्त उपसर्गों के विस्तृत विवरण मिलते हैं। [[जैन धर्म|जैन]] साहित्य में विशेष रूप से इनका उल्लेख रहता है क्योंकि जैन धर्म के अनुसार साधना करते समय उपसर्ग होते रहते है। और केवल वे ही व्यक्ति अपनी साधना में सफल हो सकते हैं जो उक्त सभी उपसर्गों को अविचलित रहकर झेल लें। [[हिंदू]] धर्मकथाओं में भी साधना करनेवाले व्यक्तियों को अनेक विघ्नबाधाओं का सामना करना पड़ता है किंतु वहाँ उन्हें उपसर्ग की संज्ञा यदाकदा ही गई है।
== इन्हें भी देखें ==
* [[प्रत्यय]]
* [[व्युत्पत्ति]]
* [[व्याकरण]]
==बाहरी कड़ियाँ==
|