"सातवाहन": अवतरणों में अंतर
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|image_map_alt = Satavahana
|image_map_caption= Approximate extent of the Satavahana empire under [[Gautamiputra Satkarni]]
|capital = [[प्रतिस्ठान]], [[अमरावती (राजधानी)|अमरावती]]
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}}
{{सातवाहन}}
'''सातवाहन''' [[प्राचीन भारत]] का एक
सीसे का सिक्का चलाने वाला पहला वंश सातवाहन वंश था, और वह सीसे का सिक्का रोम से लाया जाता था।
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== सातवाहनों का उदय तथा उनका मूल निवास स्थान ==
सातवाहनों के अभ्युदय तथा उनके मूल निवास स्थान को ले कर विभिन्न विद्वानों में गहरा मतभेद है। शिलालेख तथा सिक्कों में वर्णित सातवाहन और शातकर्णी शासकों को पुराणों में आन्ध्र, आन्ध्र-मृत्य तथा आन्ध्र जातीय नामों से पुकारा गया है। इस आधार पर विद्वान इस निर्णय पर पहुँचे है कि सातवाहन अथवा शातकरणी राजा आन्ध्रों के समतुल्य थे। रैपसन, स्मिथ तथा भण्डारकर के अनुसार सातवाहन शासक आन्ध्र देश से सम्बन्धित थे। आन्ध्र लोगों के विषय में पुराण कहते है कि वे लोग प्राचीन तेलगु प्रदेश जो कि गोदावरी तथा कृष्णा नदी के मध्य में स्थित था, के निवासी थे। एतरेय ब्राह्मण में उनका उल्लेख ऐसी जाति के रूप में हुआ है जो आर्यों के प्रभाव से मुक्त थी। इंडिका में मैगस्थनीज उनकी शक्ति एवं समृद्धि का उल्लेख किया ह। अशोक के शिलालेखों में उनका वर्णन ऐसे लोगों के रूप में हुआ है जो कि उसके साम्राज्य के प्रभाव में थे। परन्तु मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद उनका क्या हुआ इसका पता नही चलता। सम्भवतः उन्होनं अपने आपको स्वतन्त्र घषित कर दिया। ऊपर वर्णित इतिहासकार यद्यपि आन्ध्रप्रदेश को सातवाहनों का मूल निवास स्थान मानते है तथापि उनकी शक्ति के केन्द्र को लेकर इन विद्वानों में मतभेद हैं। जहाँ स्मिथ श्री काकुलम् को सातवाहनों अथवा आन्ध्रों की राजधानी मानते हैं। परन्तु सातवाहन के आन्ध्रों के साथ सम्बन्ध को लेकर विद्वानों में मतभेद है। सामवाहन वंश के शिलालेखों में इा काल के शासकों को निरन्तर रूप से सातवाहन अथवा शातकर्णी कहा गया है। साहित्यिक ग्रन्थों में इनके लिए यदाकदा शाली वाहन शब्द का भी प्रयोग हुआ है। परन्तु इस सन्दर्भ में आन्ध्र शब्द का प्रयोग इस वंश के किसी भी शिलालेख में नही है। दूसरी ओर शिलालेखों, सिक्कों तथा साहित्यिक स्रोतों के आधार पर पश्चिमी भारत को इनका मूल निवास स्थान माना गया है। इस तथ्य का प्रमाण नानाघाट (पुना जिला) तथा साचीं (मध्यप्रदेश) के आरम्भिक शिलालेखों से भी मिलता है। इस आधार पर डॉ॰ गोपालचारी ने प्रतिष्ठान (आधुनिक पैठान जो कि महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है) तथा उसके आसपास के क्षेत्र के सातवाहनों का मूल निवास स्थान माना है। इसके अतिरिक्त वी0एस0 सुकूथानकर ने बेल्लारी जिले को; एच0सी0राय0 चौधरी ने अन्य देश के दक्षिणी हिस्से को तथा वी0वी0 मिराशी ने वेन गंगा नदी के दोनों किनारों से लगे बरार प्रदेश को सातवाहनों का मूल निवास स्थान माना है। इस आधार पर सातवाहनों तथा आन्ध्रों का समतुल्य एवं सजातिय होना सन्देहास्पद ही है। इस विषय में विद्वानों ने यह सुझाया है कि सातवाहनों ने अपने आरम्भिक जीवन की दक्कन से शुरुआत की तथा कुछ ही समय में आन्ध्र प्रदेश को भी जीत लिया। कालान्तर में जब शक तथा
सातवाहनों की उत्पति के विषय में भी हमें जानकारी नही है। कुछ विद्वानों ने उनकी तुलना अशोक के शिलालेखों में वर्णित सतीयपुत्रोंसे तथा कुछ ने प्लिनी द्वारा वर्णित सेतई से की है। कुछ अन्य विद्वानों ने शब्द भाशा विज्ञान के आधार पर शातकर्णी तथा सातवाहन शब्दों को परिभाषित किया है चाहे इन शब्दों की महत्ता कुछ भी रही हो परन्तु सातवाहन वंश के शिलालेखों के आधार पर यह लगभग निश्चित है कि सातवाहन भी शुंग तथा कण्व शासकों की तरह
== सातवाहनों का शासनकाल तथा कालक्रम ==
सातवाहनों के कालक्रम को लेकर विद्वानों में गहरे मतभेद हैं। [[ऐत्रेयय ब्राह्मण]] जो कि पाँच सौ ई0पूर्व में लिखा गया था उसमें आन्ध्रों को ऐसे दस्यु बताया गया है जो कि आर्य परिधि से बाहर थे तथा जो विश्वामित्र के वंशज थे। इस आधार पर डॉ॰डी0आर0 भण्डारकर ने 500 ई0पूर्व को सातवाहनों की आरम्भिक स्थिति माना है। डॉ॰वी0ए0 स्मिथ के अनुसार आन्ध्र पहले
[[वायुपुराण]] के अनुसार सातवाहनों ने 411 वर्षों तक शासन किया जबकि [[विष्णुपुराण]] उनकी शासन अवधि 300 वर्ष मानता है। दूसरी आर डॉ॰ आर0 जी0 भण्डारकर सातवाहन वंश की स्थापना 72.73 ई0पूर्व को मानते हैं। पुराणों में वर्णित एक वक्तव्य के आधार पर उन्होंने यह माना है कि, ‘‘शुंग मृत्य’’ कण्व शासक शुंग शासकों के सेवक थे तथा पेशवाओं की भांति उनके साथ-साथ शासन करते थे तथा सिमुक अथवा शिशुक नामक सातवाहन वंश के संस्थापक ने कण्व राजा सुश्रमन को मारकर कण्व तथा शुंग दोनो वंशो का अन्त कर दिया तथा उनके साम्राज्य को अपने आधीन कर लिया। परन्तु यह तथ्य अविश्वसनीय है क्योकिं हम यह भली-भांति जानते है कि शुंग तथा कण्व वंश के शासकों ने कभी संयुक्त रूप से शासन नही किया तथा कण्व वंश के संस्थापक वासुदेव कण्व ने अन्तिम शुंग शासक देवभूति की हत्या कर शासन की बागडोर सम्भाली थी। वायुपुराण के उस वक्तव्य जिसके आधार पर डॉ॰भण्डारकर ने गलत व्याख्या की है, को डॉ॰राय चौधरी ने सही ढ़ंग से परिभाषित किया है। उनके अनुसार यह गंद्याश मात्रा इतना ही बताता है कि सिमुक ने जब कण्व वंश का अन्त कर सातवाहन वंश की स्थापना की तो उसने उन शुंग उपशासकों भी समाप्त कर दिया जो कि कण्व वंश के हाथों शुंग शासकों के पराजित होने के बाद भी बचे रह गए थे। अतएव सातवाहन शासकों ने 29 ई0पूर्व (72ई0पूर्व -45वर्ष) में कण्व वंश का अन्त कर स्वयं शासन की बागडोर संभाली। परन्तु इस सब कारकों के होते हुए भी इस सम्भावना से इनकार नही किया जा सकता कि सिमुक जिसने 23वर्षों तक शासन किया वह कुछ समय पहले ही अर्थात पहली शताब्दी ई0पू0 के मध्य में ही सिंहासनारूढ़ हो गया होगा।
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